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बेटी हो या बेटा, मजबूत बनाइए क्योंकि जिन्दगी परियों की कहानी नहीं है

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लड़कियों और लड़कों की परवरिश में एक बुनियादी फर्क है और दोनों ही एकदम एक्सट्रीम पर हैं। लड़कियाँ या तो इस सोच के साथ पाली जाती हैं कि वे एक पराया धन हैं और शादी के बाद उनको गृहस्थी सम्भालनी न आयी तो उनको कालापानी दिया जा सकता है। वैसे, यह सच भी है क्योंकि ऐसा होता भी है। मुझे नहीं लगता कि लड़कों को इस तरह की मानसिक यँत्रणा से गुजरना पड़ता है...अगर पड़ता भी हो तो उनको सास और ससुराल का डर तो नहीं दिखाया जाता है। खाना बनाना और घर सम्भालना एक कला है और कला चयन का विषय है। ये सही है कि जीवन जीने के लिए खाना बनाने जैसी जरूरी बात आनी चाहिए...जो लड़कियाँ या लड़के खाना बना लेते हैं या गृहस्थी सम्भाल लेते हैं (लड़कों के मामले में तो यह कम होता है), उनको मैं आदर देती हूँ मगर इसका मतलब यह नहीं है कि जिसको ये सब नहीं आए, आप उनका जीना मुहाल कर दें। आज बहुत सी लड़कियाँ ऐसी हैं जो सुधड़ गृहिणी नहीं बन पातीं तो भी बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता मगर आज से 20 -25 साल पहले इस अभाव को भी अपराध बना लिया जाता था और आज भी बना लिया जाता है...ये अपराध तो हमने भी किये हैं...और मैं तो पूरी तरह आपातकालीन कोट...