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ओ..पीछा करने वाले जरा सुनो...(एक स्टॉकर को चिट्ठी)

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मैं अक्सर लड़कियों को लेकर जब भी सोचती हूँ तो ऐसी खबरें भी सामने आती हैं कि कोई लड़का किसी लड़का का पीछा करता पकड़ा गया या किसी ने ब्रेकअप होने पर लड़की को देख लेने की धमकी दी। ऐसी भी दिल दहला देने वाली घटनाएं...कि मेरी न हुई तो किसी की नहीं होने दूँगा टाइप...और फिर जिससे प्रेम करने का दावा भरता रहा....जिस खूबसूरती की तारीफ पर तारीफ करता रहा..उसे अपनी नफरत के तेजाब से नहला दिया...और यह सब कुछ प्यार (?) के नाम पर.... सच्ची...तब मन में ख्याल आता है कि क्या यह वही देश है जहाँ लोग अपना जीवन दांव पर लगाकर स्त्रियों के सम्मान की रक्षा करते हैं? क्या प्रेम इतना क्रूर हो सकता है कि किसी की पीड़ा में, रुदन में, आहों में अपने लिए सुख खोज ले..? प्रेम का कैसा विकृत रूप चल पड़ा है समाज में लोग..प्रेम नहीं करते...प्रेमी या प्रेमिका को जाल में फँसाते हैं और सम्बन्धों में जिसके मान - सम्मान की रक्षा का दारोमदार उनको निभाना चाहिए था...उसे बदनाम करने के लिए उसकी छवि को मटमैला करने की हद तक चले जाते हैं...। पता नहीं...कितने लड़कियां और लड़के भी इस दहशत से मुक्ति पाने के लिए मृत्यु में मुक्ति खोज लेन

व्यवस्था अगर अपराधियों को प्रश्रय देगी तो परिवार हो या समाज, उसका टूटना तय है

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महिला दिवस हम हर साल मनाते हैं । आँकड़े गिनवाते हैं...शुभकामना संदेश भेजकर सम्मान जताते हैं मगर सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि हम क्या महिलाओं के मुद्दों को समझ पाते हैं। क्या हम लड़कियों की मनःस्थिति को समझ पाते हैं । क्या हमारे भीतर इतना साहस है कि हम समस्याओं की जड़ तक जाकर उनसे टकराएं और उनको सुलझा सकें । महिलाओं के मुद्दों को मैं चार तरफ से देखती हूँ...किचेन प़ॉलिटिक्स, माता - पिता द्वारा किया जाने वाला पक्षपात, सिबलिंग राइवलरी और ऑफिस पॉलिटिक्स ...सबसे अधिक खतरनाक ..अपराधियों को प्रश्रय, प्रोत्साहन और सम्मान देने वाली व्यवस्था । यह एक सत्य है कि परिवार से लेकर समाज तक, राजनीति से लेकर इतिहास तक सब के सब अपराधियों के पक्ष में खड़े होते रहे हैं...अगर न खड़े होते तो महाभारत के भीषण युद्ध की नौबत ही नहीं आती । सबसे पहले सिबलिंग राइवलरी की बात करती हूँ...। महाभारत सिबलिंग राइवलरी का सबसे बड़ा उदाहरण है और इसके लिए दोषी भी वह व्यवस्था है जहाँ गांधारी द्रोपदी को शाप देने से रोकती हैं....मगर बचपन में दुर्योधन को शकुनि से दूर रखने के लिए कुछ नहीं करती...। अगर वह दुर्योधन को थप्पड़ मारना जानत

प्रेम हासिल करना नहीं है, अपना अस्तित्व मिटाना नहीं है, आत्मसात करना है

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प्यार बड़ी अजीब चीज है, यह मान लिया जाता है कि प्यार करना है तो अपने व्यक्तित्व को समाप्त कर ही लेना होगा । दो शरीर, एक आत्मा जैसी कई मान्यताएं चली आ रही हैं मगर मुझे लगता है कि दो शरीरों के साथ, दो आत्माओं का अपने स्व में रहना बहुत जरूरी है। अपने अस्तित्व को तिरोहित करके प्रेम करना मेरी नजर में यूटोपिया है पर मैं प्यार की इतनी बातें क्यों कर रही हूँ जिसको प्यार से कोई मतलब ही नहीं । मेरे लिए प्रेम की पहली सीढ़ी ही स्व से यानी खुद से प्रेम करना है, अपना सम्मान करना और अपना सम्मान रखना है। भारतीय शादियों में लड़किय़ों के विवाह के स्थायीत्व का आधार ही स्वयं को समर्पण के नाम पर तिरोहित कर देना है और लड़कों के मामले में भी...पर क्या प्रेम वही है जो विवाह से ही बंधा है या एक स्त्री और पुरुष का एक दाम्पत्य या प्रेमिल रिश्ते में रहना ही प्रेम है । अगर ऐसा है तो समाज के बाकी रिश्तों का क्या...यह समाज सिर्फ विवाहितों अथवा प्रेमियों के लिए नहीं है। ईश्वर ने यह सृष्टि सिर्फ माता - पिता एवं संतानों तक के लिए सीमित ही नहीं रखी मगर प्रेम का दायरा सब सीमित कर देता है। आप किसी एक व्यक्ति के लिए इतने

आरक्षण का स्वागत है परन्तु परिवर्तन की शुरुआत परिवार से होगी

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संसद के दोनों सत्रों में महिला आरक्षण बिल पारित हो चुका है और राजनीति में महिलाओं की भागीदारी का मार्ग प्रशस्त हो गया है । लोकसभा में 454 और राज्यसभा में 215 मत बिल के समर्थन में पड़ें । निश्चित रूप से यह हम महिलाओं के लिए ऐतिहासिक एवं गौरवशाली क्षण है । उम्मीद है कि अगले दो सालों में जनसंख्या का अंतरिम डाटा जारी किया जा सकता है। वहीं, संसद ने देश में निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या बढ़ाने पर 2026 तक रोक लगा रखी है। अब तक देखा जाए तो निर्णायक पदों पर भागीदारी के परिप्रेक्ष्य में महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है । यूनाइटेड नेशन डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) और महिलाओं के सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के लिए काम कर रहे संगठन यूएन वीमेन ने अपनी नई रिपोर्ट "द पाथ्स टू इक्वल" की रिपोर्ट के अनुसार सशक्तीकरण और लैंगिक समानता के लिहाज से भारत अब भी बहुत पीछे है । वैश्विक लिंग समानता सूचकांक (जीजीपीआई) के मुताबिक भारत में महिलाओं की स्थिति इसी बात से स्पष्ट हो जाती है कि जहां 2023 के दौरान संसद में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 14.72 फीसदी थी वहीं स्थानीय सरकार में उनकी हिस्सेदारी 44.4
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भोजपुरी गीतों में परंपरा के नाम पर अपनी गलीज सोच का परिचय मत दीजिए...या तो पलंग ही तोड़ेंगे, घाघरा के ऊपर और नीचे ही देखेंगे या फिर आगे बढ़ने वाली लडकियों पर कुंठा ही निकालेंगे श्रीमान मनोज तिवारी जैसे गायक आखिर हिन्दी प्रदेश को अंधकार में क्यों रखना चाहते हैं, क्यों नहीं चाहते कि पुरुष थोड़ी बुद्धि के साथ हृदय भी रखें....? आप जैसे लोग समाज के, देश के असली दुश्मन ही नहीं देश द्रोही भी हैं...समाज की आधी शक्ति को अपने स्वार्थ के लिए दबाकर रखना , देश को पीछे ढकेलना है.. इसकी लोकप्रियता बताती है कि अशिक्षित और कुंठाग्रस्त लोगों की तादाद कम नहीं हुई...इस गीत का विरोध पुरजोर होना चाहिए बल्कि प्रतिबंधित होना चाहिए.. पर आपके गीत का जवाब आपको मिलेगा और आपके ही अंदाज में मिलेगा, लिखने और गाने वाले आप ही नहीं...विद्या और ज्ञान की देवी समानता सिखाती हैं...कुंठा और अहंकार से निकले शब्द टिकते नहीं.... शहर की हवा ने विवेक दिया है, पँख दिए हैं जिनको तमाम ताकत के बाद भी आप छीन नहीं सकते ...वैसे हम जंगल में भी रहेंगे तो अपने पंख उगा ही लेंगे... आप अपनी शर्ट पर बटन लगाना अपने लिए एक कप चाय बना

मणिपुर हो या मालदा...खतरनाक है आपका चयनित प्रतिवाद

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मणिपुर की घटना निश्चित रूप से शर्मनाक है मगर उससे भी घटिया वो सिलेक्टिव प्रतिवाद है, राज्य और पार्टी देखकर अपने मुखर होने का समय चुनता है, चाहे आप लेफ्ट हों या राइट हों, आप जब अपने क्षेत्र की घटनाओं पर शर्मनाक चुप्पी ओढ़े रहते हैं और विरोधी पार्टी के राज्य की घटनाओं पर तीव्र प्रतिवाद करने लग जाते हैं, विश्वास कीजिए आप सिर्फ एक पार्टी कार्यकर्ता और कैडर ही लगते हैं, जो अपनी पार्टी के प्रति वफादारी दिखाने में लगा है, प्रतिवाद जब टार्गेट करने पर आ जाता है, मुद्दा और न्याय, दोनों खत्म हो जाते हैं आपका प्रतिवाद हमारे घावों पर मरहम नहीं नमक लगाता है क्योंकि आप प्रतिवाद की आड़ में भी अपनी रोटियाँ सेंक रहे होते हैं, शर्म कीजिए और बस कीजिए...बोलिए तो ईमानदारी से बोलिए वर्ना मुँह पर वही टेप लगाकर बैठिए, जो अब तक लगाए हुए थे छीः सत्ता किसी की भी हो, युग कोई भी हो जाति कोई भी हो जीत किसी की भी हो प्रतिशोध किसी से भी लेना हो विस्तार चाहे किसी भी साम्राज्य का हो ...... वो किसी स्त्री की देह को ही कुचलता है स्त्री का दमन उसके लिए प्रतीक है उसकी बर्बर जीत का और,हम???? धड़ों

सिबलिंग राइवलरी परिवारों का सच है, बेटी की जगह नहीं, बहू को बहू बनाकर सम्मान दीजिए

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परिवार को लेकर हमारे देश में एक यूटोपिया है...हम भारतीय ऐसी कल्पना में जीते हैं जिसमें परिवार का मतलब सारी समस्याओं का समाधान है मगर ऐसा होता नहीं है । परिवार में प्रेम हो सकता है मगर परिवार में लोकतांत्रिक परिवेश न हो, किसी एक व्यक्ति की निरंकुश सत्ता हो और वह उस सत्ता का उपयोग अपने छोटे भाई - बहनों को दबाने के लिए करे...तो परिवार का ढांचा सलामत रहे..यह नहीं हो सकता । सिबलिंग राइवलरी हर परिवार का सच है मगर दिक्कत यह है कि हम न तो इसे लेकर सोचते हैं और न ही इस पर बात करना चाहते हैं । परिवारों में सम्मान का अनुपात शक्ति, सामर्थ्य और पैसे से तय होता है..बेटा हो या बेटी हो, खुद माता - पिता भी अपने बच्चों को इसी आधार पर प्रेम देते हैं । सम्पन्नता से ही आचरण तय होता है और यही बात ईर्ष्या का कारण बनती है । 'समरथ को नहीं दोष गोसाई' की उक्ति भारतीय संयुक्त परिवारों का सच है । अन्यायी अगर समर्थ हो तो बहिष्कार प्रताड़ित का होता है, दोषी का नहीं । खासतौर से मामला लड़कियों का हो तो उनकी भावुकता कब उनकी प्रताड़ना का कारण बन जाती है और संवेदना का लाभ उठाकर कब उनके साथ माइंड गेम खेला जा