समाज की जरूरत हैं प्रसाद की मुखर स्त्रियाँ और उनके प्रश्न
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सुषमा कनुप्रिया जयशंकर प्रसाद हिन्दी साहित्य की निधि हैं और उनका साहित्य समाज की धरोहर। छायावाद का उत्कर्ष उनकी रचनाओं में दिखता है और 'कामायनी' इस उत्कृष्टता का शिखर। राष्ट्रवाद का उत्कर्ष देखना हो तो प्रसाद के समूचे साहित्य में वह भरा पड़ा है। प्रसाद इतिहास के शिलालेख पर संवेदना से समाज को समेटते हुए लिखते हैं मगर मुझे लगता है कि स्त्री के सन्दर्भ में कामायनी उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति नहीं है अपितु इसका शिखर तो 'ध्रुवस्वामिनी' में दिखता है जो पहले प्रकाशित हुई थी। यह आश्चर्य की बात लगती है कि एक ही व्यक्ति के दो रूप उसके साहित्य की दो अलग विधाओं में दिखते हैं। अगर कामायनी की बात की जाए तो वे नारी को श्रद्धा कहते हैं, प्रकृति का रूप बताते हैं मगर पुरुष के प्रतिकार का सामर्थ्य वे उसे नहीं देते हैं जबकि मनु गर्भवती श्रद्धा को छोड़कर चल देता है। वह इड़ा के प्रश्रय में रहता है और उसके साथ उसकी प्रजा पर भी अत्याचार करता है, इसके बावजूद इड़ा को बुद्धि और पश्चिम की बताकर प्रसाद उसे उपेक्षित करते हैं....यह बात बड़ी अजीब लगती है कि तमाम प्रताड़नाओं के बावजूद श्रद्धा मनु को