हर वहशी अपराध का अंत तो हमारे हाथों से ही होना है



हर बार कोई निर्भया या आसिफा शिकार होती है, हर बार मोमबत्तियाँ गलायी जाती हैं और हर बार रैलियाँ निकाली जाती हैं। ये कोई नयी बात नहीं है। अपराधियों की सजा की माँग पर सोशल स्टेटस शेयर किये जाते हैं और नेता इस पर अपनी गोटियाँ फिक्स करते हैं। इस पर तब कहाँ थे, टाइप लोग और भी वीभत्स तस्वीरें लाते हैं और पुरानी गलतियों से सीखने की जगह नयी गलती और अपराध को ढकने की कोशिश करते हैं। अच्छा, जरा सोचिए तो ये बलात्कारी पैदा कहाँ से होते हैं? बलात्कार के नाम पर बेटिय़ों को मारने वाले स्टेटस जो चिपका रहे हैं, वह उसी पुरानी हताशा को सामने ला रहे हैं, मारना है तो अपराध को मारिए क्योंकि अपराधी तो रक्तबीज की तरह हैं, एक को मारियेगा...10 और पैदा होंगे।
अपराधी को सजा जरूर दीजिए मगर उससे भी जरूरी है कि अपराध को ही जड़ से खत्म किया जाये और इसके लिए फाँसी के अलावा बहुत कुछ करने की जरूरत है। इसके लिए हर स्त्री और पुरुष को आगे आने की जरूरत है, जरूरत पड़े तो कठोर बनने में कोई बुराई नहीं है और सब चाहें तो ऐसा होना नामुमकिन नहीं है। यहाँ गौर करने वाली बात है कि असम से लेकर उत्तर प्रदेश, बिहार से लेकर जम्मू तक...जब भी बलात्कार या कोई भी हिंसा हुई है, किसी भी धर्माचार्य ने, किसी मौलवी ने, किसी जैन या किसी पादरी गुरु ने मुँह नहीं खोला जबकि अधिकतर बाबा बलात्कार के अपराध में ही गिरफ्तार हुए और उनको बचाने के लिए सब जान दिए जा रहे हैं...क्यों? मंदिर या मस्जिद तो पवित्र होते हैं न, तो अभी तक किसी हिन्दू धर्मगुरु का मौत व्रत टूटा क्यों नहीं, अलबत्ता मुँह खोलेंगे तो चार बच्चे पैदा करने की नसीहत जरूर देंगे। कोई मौलवी मस्जिद में बलात्कार होने पर क्यों नहीं विरोध करता? ये आपके आदर्श हैं और इनके किसी भव्य समारोहों की तरह आयोजित सत्संगों में आप शांति खोज रहे हैं। पहले धर्म का मतलब तो जानिए....कोई धर्म बलात्कार या हिंसा को जायज नहीं ठहराता...ये धर्म के ठेकेदार हैं जिनके लिए उनका धर्म एक हथियार है घृणा फैलाने का..और ये हथियार हमने और आपने थमाया है..छोड़ दीजिए इनको इनके हाल पर। अपनी आवाज नहीं, एक दूसरे के लिए आवाज उठाइए...।

सबसे पहले सवाल पूछिए....पत्रकार भी पूछें और सत्संगों में जाने वाले लोग भी पूछें...इनके भागने के लिए कोई जगह नहीं बची रहनी चाहिए...यह किसी नेता के वोट का मामला होता या उसकी अपनी कोई बेटी होती तो अब तक इतना हंगामा ही नहीं होता...सीधे इंसाफ होता मगर आम आदमी की लड़ाई तो आम आदमी को ही लड़नी होगी तो चलिए कोशिश तो कम से कम करें -

 धर्म, जाति और राष्ट्रवाद के नाम पर आपराधिक मनोवृत्ति वाले लोगों को वोट देना बंद करें। इसके लिए अभी से अभियान चलाने की जरूरत है और शिक्षित वर्ग अभी से इसकी तैयारी कर सकता है और इसे निरन्तर जारी रखना होगा। हर परिवार दूसरे बच्चों में अपने बच्चों को देखना शुरू करे। धर्मगुरुओं को घेरकर सवाल कीजिए, नमाज पढ़ने वाले मस्जिदों में सवाल करें...और जवाब न मिलें तो सीधे बहिष्कार करें।
सभी सामाजिक व साहित्यिक संस्थाएँ अब सिर्फ साहित्य रचना और पुरस्कार समारोहों या संगोष्ठियों तक सीमित न रहें। इससे आगे बढ़ें और समानतामूलक संवेदनशील रचनाओं को घर - घर जाकर लोकप्रिय बनायें जिससे जनता को स्वस्थ विकल्प मिले।

लड़कियों के लिए ही नहीं बल्कि लड़कों के लिए भी काउंसिलिंग की व्यवस्था की जाये। अपराध सड़कों पर जन्म लेता है इसलिए इस प्रक्रिया में उस वर्ग को भी शामिल करने की जरूरत है जिससे आप दूर भागते हैं। इसके लिए स्कूली तथा प्रशासनिक स्तर के साथ सामाजिक स्तर पर काम करना होगा। हर शिक्षक और वरिष्ठ सहकर्मी अपने विद्यार्थियों और सहकर्मियों को संवेदनशील  बनाने के लिए शिक्षित करे। उसकी बात सुने और उसका अच्छा दोस्त बने।

अगर आपका कोई दोस्त नॉनवेज जोक्स मारता है, लड़कियों से फ्लर्ट करता है, अश्लील बातें करता है, बहनों को नीचा दिखाता है या उनको प्रताड़ित करता है तो बगैर दोस्ती की परवाह किये उसकी गलती बताकर स्पष्ट रूप से उसका साथ छोड़ दें। अगर आप किसी ऐसे समूह में हैं तो उस समूह को छोड़ें क्योंकि लड़कों की सही राह पर लाने का काम कई बार दोस्त ही करते हैं। यही सुझाव लड़कियों के लिए भी है...आप देखें कि आपकी सहेली किसी लड़के को इस्तेमाल कर रही है तो आपको उसे छोड़ देना चाहिए।

सड़क पर रह रहे बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि स्त्री और पुरुषों, बसों और टैक्सियों के ड्राइवरों, मजदूरों और घरेलू सहायकों से लेकर सुरक्षा कर्मियों तक को संवेदनशील बनाना जरूरी है। जब तक साहित्यकार इनको अश्पृश्य मानेंगे अपराध नहीं थमेंगे। इनके लिए भी कार्यशाला की जरूरत है क्योंकि ये ही वे लोग हैं जिनको और उनके परिवारों को समझाने की जरूरत है। इसके लिए प्रशासनिक सहायता और गैर सरकारी संगठनों की सहायता से ब्लॉक स्तर पर काम किया जा सकता है। एक चेन बनाकर काम करने की जरूरत है।

इस वर्ग तक लोकगीतों का स्वस्थ रूप पहुँचाइए ताकि अश्लील लोकगीतों से वे खुद को दूर कर सकें। शादियों में गाए जाने वाले फूहड़ गीतों को अलविदा कहिए और जिन शादियों में इस तरह के गीत बजते हैं, उनका प्रत्यक्ष रूप से बहिष्कार करें।
पार्टियों से शराब और फूहड़ता को दूर कीजिए और जो मीडिया या अखबार इस तरह की खबरें या सामग्री परोसता है, उसका सीधे बहिष्कार कीजिए। हर उस अखबार और चैनल से किनारा कीजिए जो खबरों को सनसनी बनाकर उत्तेजक तरीके से परोसता है।

कार्यालयों, स्कूलों, शिक्षण संस्थानों में हिंसा, अपराध और बलात्कार से लड़ने के लिए संवेदनशील बनाने की जरूरत है। काउंसिलिंग सेल बनाइए और उनके लिए हर 15 दिन पर कार्यशालाएँ आयोजित कीजिए और सीएसआर में गाँवों या उपनगरीय इलाकों में जागरुकता अभियान को शामिल कीजिए।

प्राथमिक स्तर से ही लड़के व लड़कियों को एक दूसरे के प्रति सहज और सामान्य बनाने की कोशिश कीजिए। दोनों को एक दूसरे के शारीरिक व मानसिक बदलावों से वाकिफ कीजिए। संवेदशील बनाइए और संवेदनशील बनिए। अभिभावक बच्चों से बात करें। भले ही आप शहर में हों या न हों मगर बच्चों से संवाद कायम रखें।

घरों में आपने जो असंतुलन बनाकर रखा है, उसे ठीक कीजिए। पहले अपने घरों में महिलाओं का सम्मान कीजिए, माँ - बहन या बाप - भाई की गालियाँ देना बंद करें और स्पेशल बनने की ख्वाहिश को त्यागकर समानता की शुरुआत घर से कीजिए। हर काम में साथ दीजिए और बच्चों को प्रेरित करें कि वे भी अपने बहनों और दूसरी लड़कियों से अभद्रता से बात न करें। आप जो करेंगे, बच्चे वही देखकर सीखेंगे।

अगर आप घरों में पक्षपात करती हैं, अश्लील गालियों और लोकगीतों को परम्परा मानकर पूजा करती हैं। बेटियों, बहनों और बहुओं को ग्रान्टेड लेती हैं। दूसरी लड़कियों के चरित्र और चाल -चलन का एक्सरे करती हैं, उनका विवाह न करने की स्थिति में लड़कों की सूची प्रस्तुत कर रही हैं और मोहल्ले की हर दूसरी लड़की की जासूसी करती हैं तो आप सबसे बड़ी अपराधी हैं। दहेज की सूची तैयार कर रही हैं या दहेज न मिले तो बहू को प्रताड़ित कर रही हैं तो अच्छा है कि सुधर जायें, वरना दूसरों के लिए अच्छा होगा कि वे आपको अकेला छोड़ दें।

बेटी और बहुओं के लिए ही नहीं हर उस स्त्री के लिए खड़ी होना सीखिए और इसके लिए हर निष्ठुर, कठोर और निर्मम होना पड़े तो हो जाइए। अगर आपके पति का रिश्ता किसी दूसरी लड़की से है तो पति को क्लीन चिट देने से पहले एक बार उस लड़की की बात सुनिए क्योंकि गलत दोनों हैं तो सजा भी दोनों के लिए होनी चाहिए। ये नहीं हो सकता कि लड़की को तो आप लानतें भेजें और पति को अपना लें क्योंकि इलाज नहीं हुआ तो उस लड़की की जगह कोई दूसरी लड़की लेगी और आप एक बार फिर उसी समस्या से जूझेंगी। हर अपराधी का बहिष्कार कीजिए फिर वह आपका पति हो या बेटा या भाई या कोई भी जिसे आप प्यार करती हैं जब तक कि वह खुद को निर्दोष साबित न कर दे। जिस दिन औरतें दूसरी औरतों के लिए खड़ी होना सीख लें, अपराध खुद ही दम तोड़ देंगे।

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