बौद्धिक विमर्श से अधिक संवेदना का पर्व है छठ
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छठ पूजा मेरे लिए सिर्फ प्रकृति विमर्श है, यह यात्रा स्त्री विमर्श से आगे की है, याद रखिए हम सूर्य को पूजते हैं और छठी मइया उनकी बहन हैं माँ दुर्गा का कात्यायनी रूप और ये बात इस पर्व पर काफी कुछ पढ़ने के बाद कह रही हूँ, छठ स्त्री विमर्श का नहीं, जेंडर समानता का पर्व है, दिक्कत य़ह है कि कर्म कांड तो हम खूब करते हैं पर उसकी मूल बात नहीं पकड़ते.. जाति- वर्ण, सब कुछ कर्म से निर्धारित था, आपने सुविधा के लिए बर्थ राइट को आधार बना लिया, और राज करने लगे, भाग्य से कर्म नहीं बनते, आपका कर्म ही आपका भाग्य निर्माता है कर्म ही थे कि कर्ण को हम महारथी कहते हैं, किसी के घर में चांदी का चम्मच लेकर पैदा होना आपकी उपलब्धि नहीं है, आपने कोई तीर नहीं मारा, लेकिन अगर आप उस चम्मच का सदुपयोग करते हैं, उसका सुख वंचितों तक पहुंचाते हैं, तो वह आपका कर्म है, जमशेद जी टाटा, भाई हनुमान प्रसाद ,अजीम प्रेम जी . आज उदाहरण के लिए टाटा समूह को देखिए, मुझे उद्योगपति प्रेरित करते हैं, बहुत मुश्किल होता है अपना काम खड़ा करना... पर्व का सुख पूंजी के रास्ते ही आता है ...... रही हमारे स्त्री विमर्श क