सिन्दूर पोतना..बुर्का पहनना चयन का सवाल है...बौद्धिक संवेदनहीनता को दूर रखें

‘ छठ के त्योहार में बिहार वासिनी स्त्रियां मांग माथे के अलावा नाक पर भी सिंदूर क्यों पोत रचा लेती हैं ? कोई खास वजह होती है क्या ?’ मैत्रेयी पुष्पा.... आदरणीय मैत्रेयी जी, मैं सोचती थी कि साहित्यकार दूसरों की वैचारिक स्वतन्त्रता का आदर करते हैं...आपसे काफी प्रभावित भी थी...पढ़ा है आपको...अच्छा लिखती हैं मगर मुझे सन्देह है कि अभिव्यक्ति की यह स्वतन्त्रता आप अपने जीवन में देती भी होंगी कि नहीं। खैर, मैं देती हूँ मगर वहीं तक जहाँ तक आपकी संवेदनहीन बौद्धिकता न पहुँचे। एक समय में आपका साक्षात्कार भी ले चुकी है और तब आपने कहा था कि आप तोड़-फोड़ की नहीं, जोड़ने की बात करती हैं। क्या आपने बंगाल के सिन्दूर खेला के बारे में सुना है....वहाँ सिन्दूर भावुकता भर ही सीमित नहीं है...वह शक्ति का प्रतीक भी है....वैसे मंगलवार और शनिवार को हनुमान जी को भी सिन्दूर लगाया जाता है...आपकी नजर में वे कौन सी पितृसत्तात्मकता से पीड़ित हैं....कोई आप पर अपने विचार नहीं लाद रहा...आपके विचारों में अगर ताकत होगी और उनकी वह स्वीकार्यत...