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संयम, अनुशासन, सृजन, सकारात्मकता ..बस यही मंत्र हैं कोविड ही नहीं, जीवन के भी

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  जीवन में ऐसा समय आता है और ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं जब आप ही अपने पास होते हैं। यह समय आत्मविश्लेषण का होता है, चिन्तन का होता है और इसके लिए एकान्त जरूरी होता है। भीड़ में रहकर खुद से बात होनी मुश्किल होती है। जब यह पँक्तियाँ लिख रही हूँ तो समूचा विश्व कोविड -19 की चपेट में है, काल का तांडव, मृत्यु की विभीषिका है, प्रकृति के कोप से पूरा देश और पूरी पृथ्वी आक्रांत है और इस बीच बहस चल रही है, विवाद हो रहे हैं, ऑक्सीजन और दवाओं की कालाबाजारी हो रही है..एक दूसरे को नीचा दिखाने और कमतर साबित करने की होड़ लगी है...मुख पर प्रेम और हृदय में घृणा है..आस - पास के ऐसे लोगों को जाते देख रही हूँ जिनको देखते हुए बड़ी हुई...सीखा...मन क्लान्त हो पड़ा है...हम दिखावे की ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहाँ उदारता से लेकर रोग तक, सब प्रदर्शन की वस्तु बन गये हैं.. जरा सोचिए तो ईश्वर ने ऐसी ही दुनिया दी थी आपको? क्या ऐसा ही संसार दिया था..? यही देश था जहाँ लोग दीर्घायु हुआ करते थे...स्वस्थ रहा करते थे और तब आज की तरह महँगी चिकित्सा प्रणाली भी नहीं थी। आविष्कार हमारी आवश्यकता हैं परन्तु जब लालच की पूर्ति का हथ