लड़कों की प्रगति वरदान है तो लड़कियों की उड़ान अपराध क्यों?

टेनिस खिलाड़ी राधिका की हत्या ने झकझोर कर रख दिया है। राधिका की सहेली हिमांशिका ने अपने वीडियो में दावा किया है कि राधिका यादव की हत्या साजिश के तहत हुई है। उसने यह भी कहा कि राधिका पर घर में कड़ी पाबंदियां थीं, जिससे वह मानसिक रूप से परेशान रहती थी। वह एक प्रतिभाशाली टेनिस खिलाड़ी होने के साथ-साथ फोटोग्राफी और वीडियो बनाने की शौकीन भी थी, लेकिन उसे अक्सर उसके परिवार की रोक-टोक का सामना करना पड़ता था। दीपक यादव को गांव के कुछ लोग उसकी बेटी के एकेडमी चलाने के लिए टोकते थे। उसके चरित्र पर भी अंगुली उठाते थे। ऐसे में दीपक ने बेटी को एकेडमी बंद करने के कहा था, लेकिन वह नहीं मानी और उसने खिलाड़ियों को टेनिस कोर्ट में प्रशिक्षण देना जारी रखा। आखिर क्यों लड़के का कमाना, उसकी सफलता, उपलब्धियां किसी खानदान की शान होती है । दामाद का ऊँचे पद पर जाना गर्व का विषय होता है मगर बहू या बेटी का कमाना उसका निजी मामला या अहंकार। आखिर क्यों अब तक भारतीय परिवार खासकर माता - पिता, भाई - बहन अपनी ही बहनों की तरक्की को देखकर जलते हैं? किसी लड़की की उपलब्धि आखिर प्रतियोगिता का मामला कैसे बन जाती है, वह परिवार के गर्व का विषय क्यों नहीं बनती ? क्यों जिस बच्ची को आपने जन्म दिया, बड़ा किय़ा, जिस बहन ने आपकी कलाई पर राखी बांधी...चार लोगों की बातों में आकर आप उसकी जान के दुश्मन बन जाते हैं और क्या मिल जाता है इससे आपको? अगर आपको मुकाबला ही करना है तो एक स्वस्थ प्रतियोगिता कीजिए। किसी का मनोबल गिराकर, किसी का काम छुड़वाकर, किसी को बदनाम कर, किसी को नीचा दिखाकर अगर किसी को सुकून मिलता है तो यकीन मानिए, मनुष्य तो वह है ही नहीं। माता - पिता आखिर तुलना क्यों करते हैं? माता - पिता द्वारा किया गया भेदभाव ही ईर्ष्या का कारण है। बच्चों को जेंडर समझकर नहीं, बच्चों की तरह बड़ा कीजिए। दुनिया की कोई भी जगह हो, युवाओं के लिए जीना आसान नहीं है। माता - पिता, परिवार कभी बच्चों का बुरा नहीं चाहते। इस एक वाक्य में बच्चों के साथ किये जाने वाले न जाने कितने अपराध दबा दिए जाते हैं या फिर जस्टीफाई कर दिए जा रहे हैं और यही सबसे खतरनाक है । माता - पिता अपने बच्चों को अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा का मोहरा बना रहे हैं...। कितना खतरनाक है कि रूढ़ियों ने, जर्जर परम्पराओं के अहंकार ने, पितृसत्तात्मक सोच ने एक पिता को राक्षस बना दिया। बहन, बेटी, पत्नी सनकी कट्टरवाद का सॉफ्ट टारगेट हैं। समाज के चार लोग आपके बच्चों की सफलता को नहीं पचा पाते तो आपको भड़काते हैं । उनको नहीं बर्दाश्त होता कि कैसे उनके खानदान में जो नहीं कर पाया, वह आपके घर की बहन -बेटियाँ कर ले रही हैं। ये वह असफल और सनकी लोग हैं जिन्होंने खुद उड़ना नहीं सीखा इसलिए वह आपकी राह में कांटे बिछाते हैं। ये कुल, खानदान, रिश्तेदार, नातेदार कभी आपके संघर्ष के साथी नहीं बनते मगर आपके परिवार की बढ़ती प्रतिष्ठा उनसे देखी नहीं जाती इसलिए वह भड़काते हैं और आप उनके बहकावे में आकर अपने ही बच्चों के दुश्मन बन जाते हैं। अगर आप शास्त्रों की बात करते हैं तो ध्यान रखिए महिषासुर का वध करने के लिए स्वयं देवताओं ने माता दुर्गा को अपनी शक्तियाँ दी थीं। भगवान शिव की पुत्री अशोक सुन्दरी शिवलिंग में भी विराजमान है। शिवलिंग पर जब जल या दूध अर्पित किया जाता है, तो वह एक धारा के रूप में शिवलिंग के जिस रास्ते से होकर निकलता है, उसी स्थान को देवी अशोक सुंदरी कहा जाता है। इसलिए कहते हैं कि जब भी शिवलिंग की पूजा की जाती है, तो देवी अशोक सुंदरी की पूजा करना भी अनिवार्य है। सारे संसार को ज्ञान देने वाली माता सरस्वती भगवान शिव की बहन हैं। हमारे शास्त्रों ने तो कभी बहन - बेटियों को बंधन में रखा ही नहीं, फिर उनके ये तथाकथित भक्त बेटियों की राह में कांटे क्यों बिछा रहे हैं? क्या इस देश के पुरुषों को कृष्ण का आदर्श नहीं दिखता जिन्होंने अपनी बहन सुभद्रा की इच्छा का मान रखते हुए अर्जुन से उसका विवाह करवाया था । जगन्नाथ धाम में दोनों भाइयों के बीच सुभद्रा रहती हैं। समाज में ये कैसे भाई हैं जो अपनी बहनों को घर से निकलवाने के लिए षड्यंत्र रचते हैं, जाति और प्रतिष्ठा के नाम पर उनकी हत्या कर रहे हैं, आखिर खून के छींटे दामन पर लेकर सो कैसे लेते हैं ये लोग? जो लोग राधिका के पिता के समर्थन में खड़े हैं, वे सचमुच वीभत्स हैं। बच्चे आपकी सम्पत्ति नहीं हैं, ये समझना जरूरी है। कल्पना कीजिए कि क्या होगा अगर स्त्रियां और बच्चे आपके साथ भी यही करने लगें। अपराध तो बड़े भी करते हैं, हत्या भी करते हैं और एक से अधिक सम्बन्ध भी रखते हैं तो क्या आपको गोली मार देनी चाहिए? बच्चों की गलतियों पर मां - बाप, परिवार व समाज सभी हावी होते हैं, हिंसक होते हैं, कल को अगर यही सलूक आपके साथ होगा तो क्या आपको स्वीकार होगा? समस्या यह है कि लड़कियां और युवा उड़ना सीख चुके हैं और आप उनको पिंजरे में रखना चाहते हैं। अगर घर से ही समर्थन, प्रोत्साहन और विश्वास भरा सहयोग मिले तो कोई युवा नहीं भटक सकता। जब तक बच्चों को परम्परा की जगह रूढ़ियों से जबरन जकड़ा जाता रहेगा, जब तक आपकी सोच पर चार लोगों का कब्जा होगा, जब तक आप रिश्तों को जंग का मैदान समझकर जलते रहेंगे, तब तक कुछ नहीं बदलने वाला। समाज को बदलना है तो अपराध को जस्टीफाई करना छोड़िए।

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