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आखिर हम महिला मीडियाकर्मियों से आपको इतना भय क्यों है साहब?

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मैंने जब अपराजिता और शुभजिता शुरू की थी तो तय किया था कि यह लड़कियों की मीडिया में भागेदारी बढ़ाने का माध्यम बनेगी। इसका मतलब यह नहीं था कि मुझे लड़कों से लिखवाने या उनको टीम में लेने से आपत्ति थी बल्कि इसका कारण यह था कि मीडिया में लड़कियों की जगह पहले से ही बहुत कम है। अगर है भी तो उनको कोने में रखा जाता है मतलब फिलर की तरह..ताकि यह भ्रम बना रहे कि हम स्त्री विरोधी नहीं हैं क्योंकि हमारे मीडिया माध्यमों में लड़कियों की उपस्थिति को स्वीकार करने में हिचक है। मीडिया में रहते हुए यह पक्षपात पिछले 18 साल से देखती आ रही हूँ। निश्चित रूप से लड़कियों की जिम्मेदारी होती है और उनको अपने काम के साथ घर भी सम्भालना पड़ता है और इस वजह से उनके लिए उतना समय दे पाना सम्भव न होता मगर वे लगातार परिश्रम करती हैं। आज अगर महिलाएं काम कर रही हैं तो ऐसा नहीं है कि उनके लिए बहुत अधिक सुविधाएं दी जा रही हैं। यह जरूर है कि कुछ मीडिया संस्थानों में या कुछ सहकर्मियों की सदाशयता के कारण उनको छुट्टी मिलती है या कई बार उनकी परिस्थितियों को समझा जाता है मगर अधिकतर मामलों में लड़कियाँ यह ताना जरूर सुनती हैं कि '