पद्मावती...राजपूत...स्त्री....इज्जत के नाम पर.....हजार खून माफ
कहते हैं कि कुछ चीजें होती हैं तो उसे होने देना चाहिए क्योंकि उसके बहाने बहुत सी बातें सामने आती हैं और पद्मावती प्रकरण में अभी यही हो रहा है। आप हर बात के लिए मीडिया का मुंह ताकते हैं और जब संजय लीला भंसाली ने मीडिया का मुंह देखा तो आपको मिर्च लग गयी। स्त्री को देवी और मां बनाकर उसके मनुष्य होने की तमाम सम्भावनाओं को खत्म कर देना और उसे प्रतिष्ठा के नाम पर महिमामंडित करना ही वह कारण है जिससे बड़े से बड़ा अन्याय ढका जा रहा है। आप औरतों से जीने और सांस लेने का अधिकार छीन रहे हैं और आप कहते हैं कि आप औरतों की बड़ी इज्जत करते हैं। भारतीय परिवारों में प्रतिष्ठा की पराकाष्ठा हिंसा और रक्तपात पर खत्म होती है मगर ये समझने की कोई जहमत नहीं उठाता कि वह स्त्री क्या चाहती है ? सच तो यह है कि आपने स्त्रियों के व्यक्तित्व को अपनी मूँछों के अनुसार काटा और रखा है और यही कारण है कि आज तक भारत में ऑनर किलिंग चली आ रही है। आप किसी स्त्री को अपने साथ रखैल के रूप में रख सकते हैं और आपके दरबार में नाचने के लिए भी एक स्त्री ही चाहिए मगर आपके घर की स्त्री अगर अपने उल्लास को व्यक्त करने के लिए थिरकती...