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बख्शो, बख्शो, अब हमें बख्शो

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इन दिनों महिलाओं को सशक्त बनाने की मुहिम टीवी पर चल पड़ी है। होना तो यह चाहिए कि इसमें खुशी हो मगर एकता कपूर की महिमा से छोटे परदे पर जिस तरह की औरतों को गढ़ा जा रहा है...और जिस तरह से पौराणिक चरित्रों और आख्यानों के नाम पर कचरा परोसा जा रहा है...उसे देखते हुए यह मुहिम एक मजाक से अधिक नहीं लगती। तमाम चैनल परम्परा और आधुनिकता की चाशनी को मजेदार बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं और सबके बीच होड़ लगी रहती है। इन सबके बीच जो कचरा होता है वह औरतों का होता है...परम्परा के नाम पर इतिहास को तो छोड़ दीजिए...आख्यानों की जो दुर्दशा होती है...और बगैर किसी शोध के ठोस पुरातात्विक शोध के प्रचलित किवदंतियों के आधार पर जो धारावाहिक बनते हैं...उनके बारे में क्या कहा जाये...उनका एकमात्र ध्येय ही अपनी पराधीनता को महिमामंडित करते हुए ऐसे देवी - देवताओं और चरित्रों का गुणगान करना है जिनके कारण फजीहत आम औरतों की होती है क्योंकि हमारे घरों से लेकर सड़कों तक उनका असर पड़ता है। कपिल शर्मा के शो में महिलाओं के कपड़े पहनकर महिलाओं के खिलाफ तमाम चुटकुले आपको सुनने को मिलेंगे और उन पर दहाड़ वाली हँसी हँसती अर्च