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रुढ़ियों का पिंजरा अगर सोने का भी हो तो भी वह पिंजरा ही है, उड़ान आसमान की होनी चाहिए

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वह घूंघट, हिजाब और परदे का समर्थन करते हैं क्योंकि उनको लगता है कि औरत बेशकीमती है और उस पर किसी की नजर नहीं पड़नी चाहिए। एक छोटा सा प्रश्न यह है कि औरतें बेशकीमती हैं तो पुरुष क्या हैं? पुरुष क्या कबाड़ हैं जो उनको यूँ ही भटकने के लिए खुली सड़क पर फेंक दिया जाए। गुलामी की जंजीर को अगर धर्म और समाज के नाम पर जेवर बनाकर पहन लिया जाए, तो भी वह जंजीर ही रहती है... आज मामला नौ सो चूहे खाय, बिल्ली हज को चली वाला हो गया है और उसके पीछे कहीं न कहीं सामाजिक और पारिवारिक स्वीकृति की चाह भी है और स्वीकृति के जरिए ही बड़े निशाने साधे जाते हैं। यही कारण हैं कि जींस पहनने वाली अभिनेत्रियाँ भी जनता के सामने जाते ही साड़ी पहनने लगती हैं। मजे की बात यह है कि पहनावा औरतों का, शरीर औरतों का, जीवन औरतों का और सिर फुटोव्वल मर्द कर रहे हैं। वह समाज औरतों को हथियार बनाकर लड़ रहा है जिसके मंच पर औरतों को देखा तक नहीं जाता। इस्लाम में बहुत कुछ गलत माना जाता है लेकिन आप वह सारे काम करती आ रही हैं और आपको कोई परहेज नहीं है लेकिन लोकप्रिय बनने के लिए और स्वीकृति के लिए आपने गुलामी को भी ग्लैमराइज करना शुरू क