जरूरतों और मानवीय संबंधों का आधार भी है बाजार



बाजार आज चुनौती है, बाजार सारे फसाद की जड़ है, बाजार ने हर चीज बिगाड़ रखी है और बाजारवाद मानवीय सभ्यता को खत्म कर देगा। सवाल यह है कि सारी खामियों का ठीकरा बाजार पर फोड़ने से हम और आप अपनी जवाबदेही से बच सकते हैं। याद रहे बाजार तो मेले में भी लगता है और प्रेमचंद का हामिद भी दादी का चिमटा कहाँ से खरीदता, अगर बाजार न होता। बाजार रिश्ते बिगाड़ता है तो कई रिश्ते बनाता भी है। बचपन में खोमचों को देखकर दौड़ पड़ना, माँ या दादी से अठ्ठनी माँगकर मूँगफली खरीदना और तोहफों के रूप में अपनों का प्यार बटोरना और बाँटना, ऐसे कितने ही खूबसूरत पल हमें बाजार देता है। बाजार का जन्म ही दो लोगों की जरूरतों से होता है जो आत्मीय रिश्तों को जन्म देता है। काबुलीवाला न होता तो क्या रवींद्रनाथ की दुनिया पूरी होती, यह सोचने वाली बात है। बाजार न होता तो बनारसी साड़ी, मिष्टी दोई, लखनऊ की चिकनकारी और दक्षिण के स्वाद में भला क्या संबंध होता, बाजार आज संबंधों के जीवित रहने का आधार है क्योंकि प्रेम की अभिव्यक्ति अगर दो पैसे के फूल से होगी, तो वह भी बाजार में ही मिलेगा।  रेणु क्या फारबिसगंज की चाय का जिक्र कर पाते। यह सही है बाजार का स्वरूप बदला है, यह भी सही है इसने स्त्री को देह बनाकर परोसा है मगर लाख टके की बात यह है कि यह  भी इसलिए है क्योंकि आप या हम कहीं न कहीं इसमें शामिल हैं। बाजार जीविका देता है, जीविका आत्मविश्वास और शक्ति देती है जो कि बाजार से मिलने वाले धन से संभव है और वह ही सृजनात्मकता का कारक बनेगा। अजीम प्रेम जी ने भी इसी बाजार का सहारा लिया और शिक्षा के  लिए सैकड़ों करोड़ों की  राशि दान की। सरस्वती और लक्ष्मी एक दूसरे की शत्रु नहीं पूरक है क्योंकि सरस्वती का मतलब डिग्री होता है तो उसके लिए भी लक्ष्मी की जरूरत पड़ती है और उसका माध्यम  बाजार ही है। अगर हमारी लालसाएं हमसे नियंत्रित नहीं होतीं, अगर आज हम यूज एंड थ्रो कल्चर में यकीन रखते हैं और खुद स्त्री या पुरुष ही एक दूसरे का सम्मान नहीं कर सकते, तो इसका जिम्मेदार बाजार तो नहीं है। दिक्कत यह है कि हम विरोध करते हैं मगर आखिरकार अपनी विचारधारा को जनता तक ले जाने के लिए आपको बाजार का ही सहारा लेना होगा क्योंकि जहाँ विनिमय है, खरीद – बिक्री है, बाजार वहीं पर है। मुझे लगता है जो कि जो बुरा है, उसे कोसकर अपना खून जलाने से अच्छा है कि अपनी अच्छाई को बाजार में इस कदर ले जाएं कि बुराई कमजोर पड़ जाए और यही  मानवता की जीत होगी।

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