भारतीय लड़कियाँ हार गयीं मगर जश्न मनाइए क्योंकि आप उनको पहचानने लगे हैं
वह पहले भी खेलती थीं मगर आप चैनल बदल देते थे, अब आपने पहली बार इन
लड़कियों को देखा है। पहली बार शायद महसूस
किया है कि क्रिकेट की दुनिया में उनका अपना अस्तित्व है, ये शायद आप पहली बार महसूस
कर रहे हैं। हाँ, ये लड़कियाँ विश्व कप घर नहीं ला सकीं, ये सच है मगर उससे भी
बड़ा सच यह है कि वो लड़ीं, विकेट का धड़धड़ाकर गिरना एक कमजोरी है, निश्चित रूप
से है मगर हार के बाद उन उदास चेहरों में एक जिद ने जन्म लिया है। ये लड़ने की जिद
है, ये भारत है, यहाँ लड़कियों को पढ़ने के लिए लड़ना पड़ रहा है, बेटी बचाओ, बेटी
पढ़ाओ जैसे अभियानों की जरूरत पड़ रही है, वहीं ये लड़कियाँ उस टीम से भिड़ गयीं
जो 3 बार विश्व विजेता रह चुकी हैं। मुझे तो लगता है कि भारत ही नहीं दुनिया के
दूसरे देशों में भी महिला क्रिकेट को लेकर शोर नहीं होता मगर अब शोर होगा। मुझे
इंतजार है उस दिन का जब जब सचिन और विराट के बीच हरमनप्रीत, सुषमा, पूनम के लिए
शोर होगा....उनके पोस्टर बाजारों में वैसे ही उपलब्ध होंगे जैसे पुरुष क्रिकेटरों
के हैं। भारत में खेलना और उसे कॅरियर बनाना अभी भी मुश्किल है। लड़कियों को लड़ना
पड़ता है, जूझना पड़ता है, हर मोर्चे पर एक नयी लड़ाई लड़नी पड़ती है इसलिए आप
पुरुषों से उनकी तुलना नहीं कर सकते। विश्व कप तो हम लाकर रहेंगे, यह होगा क्योंकि
इस हार ने भी जीतने की जिद को और पक्का कर दिया है। अब बेटी को खेल के मैदान में
भेजने के लिए आपको बढ़ना होगा, वहीं सुविधाएँ देनी होंगी जो आप अपने बेटों को देते
आए हैं। ये अच्छा है क्योंकि अब भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम को घर में ही टक्कर
मिलेगी। भारतीय क्रिकेटरों में एकमात्र सचिन ही थे जो लगातार भारतीय लड़कियों का
हौसला बढ़ाते रहे। अन्य क्रिकेटरों ने मोबाइल पर बधाई दी मगर सेमीफाइनल में जब
भारतीय लड़कियाँ ऑस्ट्रेलिया को हरा रही थीं तब स्टेडियम में सन्नाटा था। क्यों हम
कुछ पाने की उम्मीद में ही खिलाड़ियों के साथ खड़े होते हैं। शिखर धवन जब जिम में
जाते हैं तो खबर बनती है, विराट अनुष्का से मिलते हैं तो वह लीड खबर बनती है, धोनी
को बेटी होती है तो आप उनको बधाईयाँ देते नहीं थकते, टीवी के परदे पर आज भी लचर
प्रदर्शन के बावजूद पुरुषों का ही राज है। बहुत से ऐसे होंगे जो इन लड़कियों की
हार को ‘आया ऊँट पहाड़ के
नीचे देखते होंगे’।
लड़की होकर
खेलेगी....ये तुम्हारे बस का रोग नहीं है, तुम्हारी जगह घर के चौके में है....न
जाने ऐसे कितने ताने लड़कियाँ रोज सुनती होंगी और इन सारी जद्दोजहद के बीच वे
अंधेरे को चीरकर सामने आयी हैं। इस हार में भी जीत है। इस देश के प्रधानमंत्री ने
हर एक खिलाड़ी को ट्वीट कर हौसला बढ़ाया, यह पहली बार था जब ट्विटर पर भी टीम को
इतना प्यार मिला। यह विश्व कप भारतीय महिला क्रिकेट टीम को स्वीकृति दे गया, जीत
की शुरुआत तो यहीं से है। हम मैच हारे, विश्व कप नहीं मिला मगर हमें मगर इस हार ने
जीत का सपना दिया है। हमारी लड़कियाँ विश्व की कद्दावर टीमों को हराकर फाइनल में
पहुँची और यह आसान नहीं था।
इससे
पहले, भारत ने 2005 में मिताली राज की
कप्तानी में टूर्नामेंट के
फाइनल में प्रवेश किया था। तब टीम कब आई, कब गयी, पता
ही नहीं चला। मिताली को टीम को विश्व कप
के फाइनल में दो बार ले जाने का गौरव तो प्राप्त है। आने वाला कल इससे भी बेहतर
होगा, आप लड़कियों को मौका दीजिए। फिलहाल ये स्वीकृति ही उनकी जीत का प्रमाण है,
लॉर्डस के ऐतिहासिक मैदान पर खेलना ही एक इतिहास है, भारतीय लड़कियों ने इतिहास
रचने की शुरुआत कर दी है।
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