औरतों की लड़ाई तो औरतें ही कमजोर बनाती रही हैं
जब कॉलेज में थे तो हम स्थानीय जरूरतमंद बच्चों के लिए कॉलेज की ओर से स्कूल चलाया करते थे। बच्चे आते थे और इनमें से कुछ लड़कियाँ भी थीं। आज भी इन बच्चों से मुलाकात होती है और इनमें शामिल हैं...दो बहनें...। इनका एक भाई भी है। आर्थिक अभाव के कारण पिता ने उसे हमारे स्कूल में भेजना शुरू कर दिया था तो हम उसे समझाकर वापस लाये थे। आज वह लड़का अपने पैरों पर खड़ा है। बड़ी बहन पढ़ने में थोड़ी कमजोर थी तो किसी तरह उसने सातवीं पास की और उसकी पढ़ाई छूट गयी। छोटी बेटी अभी पढ़ रही है। हाल ही में इनसे मेरी मुलाकात हुई तो जानकर धक्का लगा कि बड़ी बेटी की शादी तय कर दी गयी है। पिता को उसे पढ़ाना शायद व्यर्थ लग रहा है। वह लड़की कुछ नहीं बोलती या यूँ कहें कि उसके हिस्से का जवाब भी पिता देते या फिर छोटी बेटी से दिलवाते....हैं। मैंने पढ़ाई छूटने का कारण पूछा और यहाँ तक कहा कि इसकी मदद मैं करूँगी मगर कोई फायदा नहीं हुआ। छोटी बेटी ने कहा कि पापा जो कहते हैं, वहीं कह रही है। ये मानसिकता है कि पढ़ने में कमजोर बेटी की पढ़ाई पर खर्च एक बेकार निवेश है। निश्चित रूप से यह पक्षपात ही है मगर कौन समझाए और सबसे बड़ी बात है कि किस तरह समझाये। अब दूसरी घटना पर आती हूँ। वहीं पास में एक और सज्जन हैं जो गर्व के साथ कहते हैं कि उनके खानदान में कोई लड़की 10वीं से आगे नहीं पढ़ी। कॉलेज उनकी नजर में बेकार हैं जहाँ सिर्फ लड़के लड़कियों को लेकर भाग चलते हैं। पास बैठी उनकी भतीजी गौर से सुनती है और शायद उसका भी भविष्य इसी सोच के साथ निर्धारित हो.....आप कहते हैं कि बेटी पढ़ाओ....जब तक यह सोच नहीं बदलेगी....आप क्या करेंगे? उससे भी बड़ा सवाल यह है कि इस सोच को बदलने के लिए हम कर क्या रहे हैं? ये मामला और जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की नहीं है बल्कि हमारी और आपकी है जो इन तमाम लोगों से रूबरू होते हैं मगर हममें से कितने लोग हैं जो ऐसा करते हैं और सबसे बड़ी बात लड़कियों के लिए यह कितना सामान्य है कि वे अपने साथ हो रही नाइंसाफी को अपना भाग्य समझती हैं या फिर उनके लिए यह बिल्कुल फिक्र करने वाली बात नहीं है। राजस्थान में बेटे की चाह में 83 साल का बुजुर्ग खुद से 53 साल छोटी लड़की से वँश बढ़ाने के लिए विवाह करता है और 12 गाँवों के लोग आते हैं....यह क्या संदेश देता है। सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ उस शख्स की गलती है या आस – पास के लोग भी जिम्मेदार हैं। यह मामला करौली के समरादा गांव की है। दिलचस्पग है कि सुकराम बैरवा की पहली पत्नीग ने ही पति की दूसरी शादी को मंजूरी दी। सुकराम की पहली शादी बट्टो से हुई थी। दोनों को एक बेटा और दो बेटियां हुई थीं। तकरीबन 20 साल पहले सुकराम के बेटे की गंभीर बीमारी के कारण मौत हो गई थी। उनके पास काफी संपत्ति है, ऐसे में दंपति को यह चिंता खाए जा रही थी कि उनके गुजरने के बाद इसकी देखभाल कौन करेगा? उसी वक्त उनके मन में शादी का खयाल आया था। बट्टो ने भी बेटे की चाहत में सुकराम को शादी की इजाजत दे दी। इस तरह 83 वर्ष की उम्र में सुकराम ने धूम-धाम से दूसरी शादी की। स्था8नीय प्रशासन ने घटना के बारे में जानकारी होने की बात कही है। अधिकारियों ने बताया कि बुजुर्ग पहले से शादी-शुदा हैं, ऐसे में पहली पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी करना अपराध है। सबसे बड़ी बात शादी में बेटे की चाह में अपने पति को दूसरी शादी की इजाजत देने वाली पत्नी के दिमाग में क्या चल रहा होगा कि वह मंगल गीत गा रही थी। क्या उसे अन्दाजा था कि मृत्यु के कगार पर खड़े अपने पति के साथ एक युवती को बाँधकर उसने उस युवती का जीवन नर्क बना दिया और जिन्दगी बर्बाद कर दी है। शादी करने वाली लड़की की उम्र 30 साल है और वह बालिग है मगर गौर से इस लड़की का चेहरा देखिए तो इसकी बेबसी आप इसके चेहरे पर साफ देख सकते हैं। साफ लगता है कि शारीरिक तौर पर सुगठित नहीं होने का खामियाजा इस युवती को अपने जीवन की बलि देकर उठाना पड़ रहा है। क्या यह प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं कि वह इस तरह के घटिया मजाक को बन्द करे?
किसी भी पुरुष के लिए सामान्य क्यों हो जाता है कि वह बच्चों की उम्र की लड़कियों से शादी करे....उस पर समाज उसका स्वागत करे...दामाद नाचें...। हम किस युग में जी रहे हैं? इस घटना को आप ग्रामीण सन्दर्भ में देख सकते हैं क्योंकि बेमेल विवाह तो आपके पढ़े – लिखे लोग करते हैं और ग्लैमर की दुनिया के लोग भी मगर उनका बहिष्कार नहीं होता। एक पत्नी और चार बच्चों के होते हुए धर्मेन्द्र हेमामालिनी से दूसरी शादी कर लेते हैं और आपके लिए यह सामान्य लगता है.....उनकी छवि को कोई धक्का नहीं पहुँचता और न ही हेमामालिनी ही इस बारे में सोचती हैं जबकि वह एक सुशिक्षित और आत्मनिर्भर महिला हैं।
क्या यह पितृसत्ता को प्रोत्साहित करना नहीं है? औरतों की लड़ाई को तो औरतें ही कमजोर बना रही हैं। क्रिकेटर से नेता बने इमरान खान ने 68 साल की उम्र में तीसरी बार शादी की। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के प्रमुख इमरान खान ने रविवार (18 फरवरी) को बुशरा खान से निकाह किया। बुशरा मनेका एक आध्यात्मिक प्रशिक्षक हैं। पीटीआई की मीडिया शाखा ने निकाह की तस्वीरें जारी की हैं। इनमें इमरान शलवार कमीज और काले जैकेट में जबकि दुल्हन बुशरा लाल रंग के सूट और ऊनी शॉल में नजर आ रही हैं। इमरान की बहनों में से कोई भी निकाह में मौजूद नहीं थी जिससे अफवाह फैल रही है कि नेता ने इस संबंध में अपनी बहनों से कोई बातचीत नहीं की है। इससे पहले भी इमरान दो शादियाँ कर चुके हैं। इमरान की पहली पत्नी पाकिस्तानी-ब्रिटिश पत्रकार जेमिमा गोल्डस्मिथ थीं, जिनके साथ उनका रिश्ता 9 साल तक चला. जेमिमा गोल्डस्मिथ से इमरान खान के दो बेटे हैं। इसके बाद पीटीआई के प्रमुख इमरान खान ने 42 साल की रेहम खान से 2015 के जनवरी में विवाह रचाया था, लेकिन उसी साल अक्टूबर माह में ही यह रिश्ता टूट गया। पेशे से टीवी पत्रकार रेहम खान के साथ इमरान खान की शादी करीब 9 माह तक चली।
आप इमरान को दोष दे सकते हैं मगर उनसे शादी करने वाली ये तीन औरतें क्या कम जिम्मेदार हैं। अपने स्वार्थ और पैसों के लिए इस तरह की सोच को बढ़ावा देने में महिलायें पीछे नहीं रही हैं। क्या दीपिका को नहीं पता था कि उनका पद्मावत किस चीज को ग्लैमर की चाशनी में डुबो रहा है और वह खुद क्या ऐसी जिन्दगी को जीना चाहेंगे। आप लाख कहिए कि फिल्में सिर्फ मनोरंजन के लिए होती हैं मगर हर प्रभावशाली कला माध्यम की तरह फिल्मों पर भी जिम्मेदारी है और आप इससे भाग नहीं सकते। चिकनी – चमेली और फेवकॉल जैसे गाने परोसने वाली नायिकायें इसके दुष्परिणामों से नहीं भाग सकती हैं। प्यार अपनी जगह है मगर जब आप किसी और की जगह खुद को खड़ा करती हैं तो उस दूसरे व्यक्ति की गुनहगार आप हैं.... और आप इससे भाग नहीं सकतीं।
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