दुनिया बदलनी है तो पहले माँ, पत्नी, बहन या बेटी नहीं, औरत बनकर सोचिए



राजस्थान में एक महिला ने अपनी देवरानी को पति के साथ मिलकर पेड़ से बाँधकर बुरी तरह पीटा। महिला का बेटा रोता रहा...उसे दया नहीं आयी। भीड़ ने तमाशा देखा और किसी ने वीडियो भी बना लिया। वीडियो जब वायरल हुआ तो पुलिस ने अभियुक्तों को गिरफ्तार किया....यहाँ खास बात यह है पीड़िता महिला की सगी बहन थी...आप कोसेंगे...कोसिए..जी भरकर कोसते रहिए.....मगर क्या यह ऐसी एकमात्र घटना है? ऐसी घटनायें होती रहती हैं और आप मजा लेते रहते हैं और औरतों की एक दूसरे के बाल खींचती तस्वीरें साझा कर चुटकुले बनाते रहते है और फिर ऐसे ही चलता रहेगा...सोचकर ठंडी आहें भरते हैं। ऐसा नहीं है कि साहित्य जगत इससे अछूता है। एक महाशय स्त्रियों को सेक्स ऑब्जेक्ट घोषित कर देते हैं और तमाम स्त्रियाँ उनके पक्ष में खड़ी हो जाती हैं। यहाँ तक कि महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों को लेकर भी औरतें एक साथ नहीं आतीं। पति के लिए सौतन को मारने वाली या रखने वाली ही औरते ही हैं। कई मामले तो ऐसे भी दिखते हैं जब पति के सथ मिलकर किसी महिला ने किसी दूसरी महिला का बलात्कार करवाया..ऐसे में जाहिर है कि वे औरत नहीं रह जाती हैं बल्कि वे पति, बहन या बेटी भर ही रहती हैं...अपराध को शह देने वाली भी रिश्तों के नाम पर आप ही हैं तो एक अच्छे समाज का सपना देखना आपके बस की बात नहीं है। आप उसी सत्ता का हथियार मात्र हैं और आपको पता भी नहीं चल रहा कि आपको इस्तेमाल भी किया गया है।
सवाल लड़कियों के चरित्र को लेकर खड़े होते हैं मगर वे कभी भी खुद स्त्री बनकर नहीं सोचतीं। अधिकांश औरतें जब भी सोचती हैं तो वे किसी की पत्नी, माँ, बहन या बेटी बनकर सोचती हैं और जब वह कोई पुरुष हो तो  सवाल ही नहीं उठता कि वे कभी लड़कियों की तरह सोचें। जब भी दूसरे विवाह या सम्बन्धों का जिक्र होता है, आपने शायद ही सुना होगा कि किसी स्त्री ने पति को छोड़ा है...ये विरल ही होता है। हाँ, हाल ही में कोलकाता की बस में जब एक पुरुष द्वारा मास्टर बेट करने का वीडियो वायरल हुआ था तो उसके बाद उसकी पत्नी ने जरूर छोड़ा था मगर ऐसे उदाहरण नगण्य हैं।
नवलगढ़ का यह वीडियो जब वायरल हुआ तब जाकर गिरफ्तारी हुई

अधिकतर मामलों में पत्नियाँ समझौता ही करती हैं और ये सोचकर करती हैं कि उनका घर तो सुरक्षित है, पति या बेटे जो कर रहे हैं, वह घर के बाहर कर रहे हैं। ये जो शारीरिक शोषण के मामले बढ़ते जा रहे हैं, उसके पीछे यही सोच है क्योंकि शिकायत करने वाली स्त्री को ही प्रताड़ित किया जाता है और नौकरी या घर से निकाला जाता है मगर पुरुषों को काननून सजा मिल भी जाये तो घर या समाज से उसे शायद ही बहिष्कृत किया जाता है। हाल ही में मिथुन चक्रवर्ती के बेटे मिमोह का नाम बलात्कार के मामले में आया मगर उसकी शादी पर फर्क नहीं पड़ा। उसका हाथ थामने वाली कोई औरत ही थी और मिमोह की तस्वीरें देखकर कहीं से नहीं लगता कि उसे किसी बात का डर या किसी बात की शर्म है। संजय दत्त जैसे ड्रग एडिक्ट पर जब फिल्म बनती है तो उस पर टूटने वाली लड़कियाँ भी हैं। आपका चयन ही गलत है तो आपको न्याय कैसे मिलेगा..आपके ही दम पर निर्भया के अभियुक्त कह सकते हैं कि लड़कियों के साथ बलात्कार होते ही रहेंगे। कमी आपके भीतर है। ममता और स्वार्थ के बीच एक पतली सी लकीर है, परिवार और प्रेम के नाम पर इसका अन्तर मिटाया तो नहीं जाना चाहिए मगर अब यह लकीर पता ही नहीं चलती।
सवाल तो यह उठना चाहिए कि किसी बलात्कार के अभियुक्त, दहेज हत्या के अभियुक्त को आप अपनी बेटी दे कैसे देती हैं और लड़कियाँ ऐसे व्यक्ति का चयन कैसे कर लेती हैं? कोई हेमालिनी किसी प्रकाश कौर से धर्मेन्द्र को जब छीनती है तो लोग उसे घर तोड़ने का मुजरिम बनाते हैं मगर धर्मेन्द्र की इज्जत में कहीं कोई कमी नहीं आती। अगर आप सिर्फ अपना घर बचायेंगी तो अगले क्षण शिकार होने वाले बच्चे भी आप ही के घर से होंगे। ऐसे कई मामले तो मैंने खुद देखे हैं जब दहेज के लिए किसी मेरी परिचित की हत्या कर दी गयी और सब जानते हुए भी घर के लोग उस अभियुक्त की शादी या शादी की सालगिरह में रिश्ता निभाने के लिए शामिल हैं। दरअसल, माँ की ममता कब स्वार्थ में बदलती है और पति प्रेम कब अन्याय में बदलता है, ये तो खुद स्त्रियाँ ही नहीं जानती और उसी पित्तृसत्ता को मजबूत करती हैं जिसकी वे शिकार रही हैं तो काहे का सशक्तीकरण जब आप छेड़खानी करके आये बेटे का स्वागत फूलमालाओं से करती हैं। जब ऑनर किलिंग की क्रूरता में पुरुषों का साथ देती हैं, जब अपनी बेटी को जन्म लेने से पहले ही मार डालती हैं, जब बहुओं को आग में जला देती हैं....क्या आपको अधिकार है कि आपको एक अच्छा समाज मिले। अच्छा समाज बनाने के लिए पहले आपको औरत की तरह सोचना होगा...वरना रोने का ढोंग कम से कम मत कीजिए।

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