मी टू....उत्पीड़न से उबरने के बाद की सक्सेस स्टोरी भी बताइये



आज पूरा बॉलीवुड दो खेमों में बँटा दिख रहा है। तनुश्री ने नाना पाटेकर पर जो कुछ कहा, उसके बाद एक के बाद एक करके कहानियाँ सामने आ रही हैं। कंगना से लेकर विनिता नन्दा तक, कई अभिनेत्रियाँ खुलकर बोल रही हैं। कई उनके पक्ष में हैं तो कई विपक्ष में हैं और कई स्थापित अभिनेता सेफ गेम खेल रहे हैं। खासकर बहुत से अभिनेताओं ने चुप्पी साध रखी है। ऐसा नहीं है कि बॉलीवुड में इस तरह की घटनायें पहले नहीं हुईं मगर तब अभिनेत्रियों में इतनी हिम्मत नहीं थी मगर काम न मिलना या आम जिन्दगी में भी बेरोजगार और बदनाम होने का डर ही है जो लड़कियों को मुँह बन्द करने पर मजबूर करता है। अभी अदाकारा ऋचा चड्ढा का ऋचा चड्ढा का इस मामले पर कहना है कि बॉलीवुड में यौन उत्पीड़न होता है। उन्होंने एक बहुत वास्तविक और मार्मिक बात कही। उन्होंने कहा कि इस बात को स्वीकार करना साहस की बात है ऐसा करने वालों का नाम नहीं लिया जा सकता क्योंकि उसके बाद काम मिलने की गारंटी नहीं होती। ऋचा ने कहा कि यौन उत्पीड़न स्थिति से संबंधित ब्लॉग पोस्ट के लिये उनपर निशाना साधा गया। यहां तक कि नारीवादी रूझान वालों ने भी पूछा कि आप ऐसा करने वालों का नाम क्यों नहीं ले रही हैं। ऋचा ने एक न्यूज एजेंसी को दिए साक्षात्कार में कहा कि अगर आप मुझे जिंदगी भर पेंशन दें, मेरी सुरक्षा और मेरे परिवार का ख्याल रखें, यह सुनिश्चित करें कि मुझे फिल्मों और टीवी में काम मिलता रहेगा या मैं जो भी करना चाहूं करती रहूं, मेरा करियर निर्बाध बढ़ता रहे तो मैं अभी नाम लूंगी, वाकई ऐसा करूंगी। बोलने की कीमत तो चुकानी पड़ती है। याद कीजिए कि परवीन बॉबी ने जब अमिताभ बच्चन के खिलाफ आवाज उठायी तो उनके साथ क्या हुआ और उनका अन्त कितना हृदयविदारक रहा। बगैर सच जाने सबने उनको पागल कहा...आज तनुश्री भी उसी स्थिति में खड़ी हैं...लोग उत्पीड़न का ट्रॉमा नहीं जानते...बड़ी हिम्मत चाहिए अपना सब कुछ दाँव पर लगाकर बात करने के लिए। मैंने शूट का वह वीडियो देखा और यकीन मानिए काम के दौरान जो लड़कियाँ एक्सपोज करती हैं, उनको कुछ अभिनेता अपनी सम्पत्ति ही मानते हैं और यही सोच नाना पाटेकर की भी हो सकती है। एक बार आयशा जुल्का के मामले में भी नाम आया था उनका। सलमान खान तो लड़कियों को पीटने के लिए विख्यात हैं, सोमी अली से लेकर ऐश्वर्या तक ने उनको इसी वजह से छोड़ा मगर जिनमें अपनी प्रतिभा नहीं है, वो आज भी उनका गुणगान करती हैं। ये ताकत, रूतबा ही है जिसका इस्तेमाल करके बड़े -बड़े दिग्गज हर जगह आरोपों और आरोप लगाने वाली लड़कियों को दबाते रहे हैं। नाना पाटेकर ने भी यही किया था। आज रेखा का जन्मदिन है तो आरम्भिक दिनों में उनको भी इस स्थिति से गुजरना पड़ा था।

यासीर उस्मान की किताब 'रेखा: एन अनटोल्ड स्टोरी' मार्केट में आयी तो हर कोई बस इस किताब को पढ़ने के लिए बेचैन हो उठा। इस किताब में लिखा है कि मात्र 15 साल की उम्र में एक फिल्म की शूटिंग के दौरान रेखा का यौन उत्पीड़न हुआ था। किताब कहती है कि फिल्म 'अनजाना सफर' के निर्देशक राजा नवाठे और फिल्म के हीरो विश्वजीत ने रेखा को बिना बताए फिल्म का सीन शूट करने का प्लान बनाया। उस वक्त रेखा की उम्र मात्र 15 साल थी, रेखा रोमांटिक गाने के शूट के लिए सेट पर पहुंची और जैसे ही डायरेक्टर ने एक्शन बोला बिश्वजीत ने रेखा को बाहों में भरा और उन्हें चूमने लगे। रेखा को वो बिना रूके 5 मिनट तक किस करते रहे, रेखा दर्द से कराह उठी और डायरेक्टर और एक्टर उनका मजा लेते रहे, जब रेखा की आंखों से अश्रुधारा बहने लगी तब जाकर अभिनेता विश्वजीत ने उन्हें छोड़ा। क्या यह काम के नाम पर उत्पीड़न नहीं है? आज भारत कुमार बन रहे अक्षय कुमार के स्वभाव के बारे में कौन नहीं जानता कि वे कितनी लड़कियों के साथ रिश्ते रख चुके हैं। गौर कीजिए कि इस मामले पर वे कुछ नहीं बोले हैं। अमिताभ बच्चन भी कुछ नहीं बोले हैं और अधिकतर स्थापित अभिनेता बोलने से कतराते रहे हैं। अन्नू कपूर और रजा मुराद जैसों ने तनुश्री पर ही आरोप लगा दिया। ठीक इसी तरह पत्रकारिता का भी यही हाल है। स्थापित लोग भी मामलों को ऐसे ही दबाते हैं तो कभी लड़कियाँ भी समझौता करती हैं। मी टू की तरह ही टू भी चल पड़ा है। समर्थन और विरोध भी हो रहा है...लेकिन सवाल तो यही है कि आगे क्या? यहाँ ध्यान देने वाली बात हैं कि आवाज तब जाकर उठायी गयी जब पीड़ित लड़कियाँ स्थापित और सुरक्षित हो गयीं मगर उनका क्या जो स्थापित नहीं हैं, असुरक्षित हैं और लगातार शोषण का शिकार हो रही है। आप उनमें हिम्मत कहाँ से लायेंगे..परिवारों में जो शोषण होता है...उसका प्रतिकार क्या है। क्या ये बेहतर नहीं होता कि मी टू से गुजरने के बाद फिर से खड़ा होने का तरीका भी बताया जाता कि इस शोषण के खिलाफ बोलने की हिम्मत कैसे आयी और इससे कैसे उबरा जाए? बहुत सी ऐसी पीड़ित लड़कियाँ हैं जो शोषण की शिकार रहीं मगर मुँह नहीं खोल सकतीं। क्या ये बेहतर नहीं होगा कि हम खुद को अपनी लड़ाई तक सीमित रखने के बजाय दूसरी लड़कियों को मजबूत बनाने का काम करें? मानती हूँ कि शोषण बुरा है, जरूर बोलिए पर उसके साथ यह भी बताइए कि आपने उसका सामना कैसे किया ताकि आप जिस स्थिति से गुजरीं, कोई और न गुजरे। आप मान लीजिए कि रातों -रात आप लोगों को नहीं बदल सकतीं मगर लड़कियों को तो इतना मजबूत बना ही सकती हैं कि वे अपने साथ दूसरी लड़कियों की लड़ाई भी मजबूत करें। अतीत को ढोना और अतीत से सीखना, दो अलग बातें हैं...मेरा विश्वास अतीत से सीखकर ऐसी दुनिया बनाने में जो ज्यादा मजबूत हो। बगैर खुद को मजबूत किये आप कुछ भी नहीं बदल सकतीं। न अपने लिए लड़ सकती हैं और न दूसरों के लिए आवाज उठा सकती हैं।

 बदलना है तो सोच को बदलिए, उत्पीड़न की कहानियों को सक्सेस स्टोरी में बदलिए तभी बात बनेगी, वैसे ही जैसे रेखा ने बदला है। अगर उस समय वह लड़ती ही रह जातीं तो आज यहाँ तक नहीं आ पातीं। तनुश्री की तरह, जो आज 10 साल बाद भी लौटी हैं, बगैर अन्जाम की परवाह किए...खतरों को जानकर..अब जब वह मजबूत हुई हैं तो लोग उनको सुन रहे हैं। कंगना की तरह जो खुलकर बोलना और एक पक्ष लेना जानती हैं और किसी की परवाह नहीं करतीं। ऋतिक के स्टारडम की परवाह किये बगैर वे जिस तरह बोलीं ंऔर जिस तरह बॉलीवुड में आउटसाइडर होने पर भी जैसे जगह बनायी...वह एक शानदार सक्सेस स्टोरी ही है...हमें ऐसी ही कहानियाँ चाहिए।
कहानियाँ कहना काफी नहीं है...उसे सक्सेस स्टोरी में बदलना भी सिखाइये और हो सके तो जमीनी स्तर तक इन सफलता की कहानियों से प्रेरणा भरिये....सबमें..लड़का हो या लड़की....उत्पीड़न वैसे भी जेंडर न्यूट्रल मामला है। सकारात्मक पहलू यह है कि अब इन मामलों को दबाया नहीं जा रहा बल्कि गम्भीरता से लिया जा रहा है। इस बार डेनिस मुक्वेज और नादिया मुराद को नोबल शांति पुरस्कार मिलना इसका प्रतीक है तो केन्द्रीय महिला बाल विकास मंत्री मेनका गाँधी ने भी जिस तरह खुलकर पीड़ितों के पक्ष में बात करते हुए मी टू इंडिया अभियान चलाने के साथ जो प्रतिशोध और टारगेट बनाने से बचने की बात कही है, वह स्वागत योग्य है। अब तो उन्होंने बॉलीवुड की प्रोडक्शन हाउसेज में उत्पीड़न विरोधी कमेटी बनाने की बात की जिसे 17 हाउसेज ने मान भी लिया है मगर मीडिया में ऐसा होना अब भी मुश्किल है। फिर भी शुरुआत हुई है और हमें उम्मीद करनी चाहिए कि उत्पीड़न की कहानियाँ भी आज नहीं तो कल सक्सेस स्टोरी में जरूर बदलेंगी।

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