दल के दलदल से निकल नहीं पा रहीं नेत्रियाँ तो कैसे सुधरें हालात

सपा की सदस्य रह चुकी हैं जयाप्रदा..अब आजम के निशाने पर हैं

आजम खान के बेटे ने भाजपा प्रत्याशी जया प्रदा को अनारकली कहा, पिता आजम खान..अन्तर्वस्त्रों का रंग पहले ही देख चुके हैं। इस पूरे प्रकरण पर बहुत हंगामा हुआ...राजनीति भी जमकर हुई..पुरुषों की राजनीति तो समझ में आती है मगर जो बात खटकी, वह यह है कि दल की राजनीति में भटकीं महिलाएं एक जरूरी मुद्दे पर साथ नहीं आ रही हैं, यह चुप्पी बेहद खतरनाक है। जब प्रियंका गाँधी जैसी शिक्षित नेता महिलाओं के अपमान पर कुछ नहीं बोलतीं तो बुरा लगता है। ऐसी सोच बन गयी है कि बोला तो मेरी पार्टी की महिला को नहीं, बोला, इसमें मुझे नहीं पड़ना...हम ऐसी नेत्रियों से किस बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं? एक राहत की बात रही कि दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित इस मामले पर मुखर हैं, सुषमा स्वराज, स्मृति ईरानी ने भी विरोध किया।
सवाल यह है कि क्या हम ऐसी महिलाओं को संसद में भेज रहे हैं जो एक गलत बात का विरोध करने के लिए भी पार्टी का मुँह देखेगी। अगर पुरुषों की राजनीति में महिलाएं भी पुरुषवादी मानसिकता के साथ काम करेंगी तो बहुत उम्मीद करने की गुंजाइश बची नहीं है। प्रियंका गाँधी के होते हुए उनकी पार्टी में पार्टी प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी को इसलिए पार्टी छोड़नी पड़ती है क्योंकि उनसे बदसलूकी करने वालों को वापस लिया गया...और यह तब जब पार्टी की प्रमुख खुद एक महिला रह चुकी है और एक दूसरी स्त्री भी महत्वपूर्ण भूमिका में है। खुद इन्दिरा भी ऐसी रह चुकी हैं।
प्रियंका चतुर्वेदी ने सम्मान को मुद्दा बनाकर कांग्रेस छोड़ी

राजनीति इतनी महत्वपूर्ण है कि गेस्ट हाउस कांड की शिकार रह चुकी मायावती उस कांड के अभियुक्त कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव के साथ मंच साझा करती हैं...आखिर हम क्या उम्मीद करें कि ये सब आम महिलाओं की लड़ाई कैसे लड़ने जा रही हैं...क्या यही एक कारण नहीं है कि पुरुष नेताओं की इतनी हिम्मत होती है कि वे कुछ भी कह सकें....हम खुद में लड़ने में लगी हैं तो हमारी स्थिति अच्छी कैसे होगी...डिम्पल यादव क्यों अखिलेश को कह सकीं कि आजम को रोकें या खुद उन्होंने क्यों नहीं कहा...। हैरत की बात है कि निर्भया के नाम पर संसद में आवाज बुलन्द करने वाली जया बच्चन के मुँह से भी बोल नहीं फूटे जबकि जयाप्रदा उनकी पार्टी की पूर्व सदस्य और फिल्म उद्योग से जुड़ी रही हैं। बयान क्या लोगों का मुँह देखकर दिए जाएंगे..आखिर जनता को ये लोग समझते क्या हैं?  कांग्रेस ट्रिपल तलाक कानून खत्म करने की बात कहती है और उसका कहीं से किसी महिला द्वारा विरोध नहीं होता।
इसे मौकापरस्ती न कहें तो क्या कहें

 यही स्थिति भाजपा की महिला नेत्रियों के साथ है..सोनिया और राहुल के नाम पर गालियाँ देने वालों का भी विरोध होना चाहिए था मगर हुआ नहीं। जाहिर सी बात है कि प्रतिरोध अब दल के हितों को ध्यान में रखकर किए जा रहे हैं...मगर समग्रता के तौर पर इस देश की महिलाओं के लिए स्थिति अच्छी नहीं है। जब अश्विनी चौबे ने राबड़ी देवी को घूंघट में रहने की सलाह दी, तब भाजपा की महिला नेत्रियों को आवाज उठानी चाहिए थी...अगर एक दूसरे का अपमान देखकर आप चुप हैं तो आप देश की महिलाओं के सम्मान की रक्षा कैसे करेंगे..यह सवाल तो हर पार्टी की महिला नेत्री से पूछना बनता है। आज बॉलीनुड तक बँटा हुआ है। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के नाम पर रोने वाले सितारे जनता को बता रहे हैं कि किसे वोट दें या न दें...जब फिल्में अपनी मर्जी से देखी जानिए चाहिए तो वोट किसी का मुँह देखकर क्यों किया जाना चाहिए..स्वरा भास्कर बड़ी भाव प्रवण अभिनेत्री हैं मगर तुष्टिकरण का कार्ड खेलना वे खूब सीख रही हैं...आखिर कश्मीरी हिन्दू और सिख उनकी चिन्ता के दायरे में क्यों नहीं हैं। यह सवाल उठना जायज है कि आखिर भारतीय राजनीति में इन्दिरा के बाद जो खालीपन है, इसे अभी तक भरा क्यों नहीं जा सका। प्रियंका अपनी दादी की तरह दिखने की कोशिश जरूर करती हैं मगर जिस तरह का उनका व्यवहार है, वह बहुत उम्मीदें जगा नहीं पातीं। हेमामालिनी का यह अंतिम चुनाव है, सुषमा स्वराज, सुमित्रा महाजन, उमा भारती, परिदृश्य से बाहर हैं..तो भाजपा में भी महिला नेताओं की अगली खेप फिलहाल तो नहीं दिख रही।
सब की सब दल के दलदल में

33 प्रतिशत आरक्षण की बात करने वाली पार्टियाँ खुद 3 से 10 या 20 प्रतिशत से अधिक महिलाओं को टिकट नहीं दे रहीं...जिनको टिकट मिल रहा है, उनमें से कई तो अयोग्य हैं या किसी सदस्य की पत्नी..या कोई अन्य रिश्तेदार ही हैं। अगर 2014 के लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो भी स्थितियां कमोवेश ऐसी ही थीं। तब इन चार पार्टियों ने  38 महिला प्रत्याशी मैदान में उतारे थे और इनमें से 13 महिलाएं जीती भीं थीं लेकिन इनमें एक अनुप्रिया पटेल थीं जो अपना दल की  प्रत्याशी थीं। वहीं 2009 में 28 प्रत्याशियों में से 11 महिलाएं लोकसभा का हिस्सा बनी थी। इस बार मिजोरम को पहली महिला प्रत्याशी मिली है। चतरा व लोहरदगा में एक भी महिला उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ रही हैं। तृणमूल ने महिलाओं पर भरोसा जताया है पर इस पार्टी को भी टॉलीवुड सितारों के ग्लैमर का ही आसरा है। अधिकतर पार्टियाँ कार्ड खेल रही हैं, हिन्दुत्व से लेकर जाति तक...सहानुभूति से लेकर ग्लैमर और राष्ट्रवाद तक...इन सब के बीच सब कुछ उलझ रहा है। हालत यह है कि मुनमुन सेन को अपनी दिवंगत माता जी के नाम पर वोट माँगने पड़ रहे हैं तो मिमी चक्रवर्ती हाथ में ग्लब्स पहनकर मतदाताओ से मिल रही हैं। पहली बार राष्ट्रीय महिला पार्टी नामक पार्टी भी आ रही है जो महिलाओं की पार्टी होने का दावा कर रही है।
ग्लैमर से पार लगेगी नइया

 सच्चाई तो भविष्य तय करेगा। मुश्किल यह है कि सामान्य लड़कियाँ राजनीति में नहीं आ रही हैं....जो नेत्रियाँ हैं..उनमें से अधिकतर ही एक पारिवारिक पृष्ठभूमि है और वे परिवार को ही मजबूत कर रही हैं। ममता भतीजे अभिषेक के भरोसे हैं तो मायावती को भतीजे आकाश का आसरा है। सोनिया गाँधी के पुत्र प्रेम का तो हाल यह है कि प्रियंका को उन्होंने सामने आने नहीं दिया। स्थिति यह है कि राहुल की तुलना में प्रियंका इतनी मुखर हैं कि कहीं न कहीं भाई को बहन से असुरक्षा महसूस होती दिख रही है। बहन उनके लिए प्रचार करें, यह मंजूर हैं मगर बहन वाराणसी से चुनाव लड़ें....इस पर राहुल बगलें झाँकने लगते हैं और यह महिला सशक्तीकरण का दम भरते हैं। अखिलेश ने भी डिम्पल को इसके पहले चुनाव लड़ने नहीं दिया...यूपी की 9 सीटों पर तो अकेले मुलायम परिवार ही लड़ रहा है। यह सही है कि पूनम महाजन, पंकजा मुंडे, प्रियंका चतुर्वेदी के रूप में नयी पौध सामने आ रही है मगर स्थिति यह है कि कोई भी आम लड़की राजनीति को अपना क्षेत्र नहीं बनाना चाह रही और माकपा की राज्यसभा सांसद रह चुकीं प्रो. चन्द्रकला पांडेय ने एक बार बातचीत में बताया कि सुरक्षा एक बड़ा कारण है..सुरक्षा तो बड़ा कारण है मगर सोच भी एक बड़ा कारण है..हम नेता अच्छे चाहते हैं मगर राजनीति को गम्भीरता से नहीं लेते...खासकर लड़कियों का हाल तो यह है कि वह राजनीतिक मसले पर भी कुछ कहने से बचती हैं। कई ऐसी पार्षदों को जानती हूँ जिनका काम उनके पतियों के सहारे चलता है और उनको रबर स्टॉम्प बनने में गर्व होता है...जरूरी है कि अब दल से ऊपर उठकर महिलाओं के सम्मान के लिए सभी नेत्रियाँ आगे बढ़ें...वरना इसी तरह उनको हल्के से लिया जाएगा..।

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