जेंडर न देखो अपराधी की


क्या विकास दुबे के साथ जो हुआ वो सही हुआ?'
- 'हां सही हुआ.'
जब कुछ और सवाल हुए तो वो भड़क गयी. बोली, 'पहले मरवाते हो फिर मुँह चलाने आते हो.'
एक और सवाल था - 'विकास ने मर्डर नहीं किये थे क्या?'
ये सवाल सुन कर रिचा आपे से बाहर हो गयी, 'करेगा तो... तू कौन होता है बोलने वाला.'
फिर बोली, 'जिसने गलती करी उसे सजा मिलेगी, ये मैं कह रही हूं... वक्त आने पर मैं सबका हिसाब करूंगी... सबको ठीक करूंगी - जरूरत पड़ने पर बंदूक भी उठाऊंगी.
.ये किसी मुम्बईया हिन्दी मसाला फिल्म के संवाद नहीं है। विकास दूबे हत्याकांड के दौरान पूछताछ के लिए हिरासत में ली गयी विकास की पत्नी ऋचा की आग उगलती बातें हैं। ये वही महोदया हैं जिनके पति के मानवाधिकारों की बात करके हर तरफ आँसू बहाए जा रहे हैं। बेटे की तस्वीरें दिखायी जा रही हैं...और वैचारिक गुटबन्दी की आड़ में यह बात सिरे से गायब हो गयी है कि विकास दूबे एक अपराधी था...। ऋचा जैसी ही औरतें राम रहीम जैसे बलात्कारियों के लिए धरने देती हैं।
एक और मजेदार बात...खुद ऋचा मानती है कि उसके पति के साथ जो हुआ, सही हुआ तो उसे तकलीफ किस बात की है? क्या उस बादशाहत वाली ठसक की, जो पति के आतंक के कारण उसे मिलती रही होगी या उस काली कमाई की, जिसके दम पर वह पंचायत सदस्य तक बन गयी। 
हम किसकी तरफदारी कर रहे हैं और क्य़ों कर रहे हैं...इस पर भी विचार किया जाना चाहिए। हमेशा जब आप डकैतों की बात करते हैं तो उनके ऊपर हुआ अन्याय दिखाकर उनके गुनाहों को जायज ठहराने लगते हैं। अन्याय का विरोध होना चाहिए मगर क्या इसके लिए अपराध का रास्ता अपनाने वालों की पूजा होनी चाहिए? जब हर बात के लिए समानता की माँग हो रही है तो अपराधों पर आपको छूट क्यों मिलनी चाहिए..क्यों आपको एक महिला होने का फायदा मिलना चाहिए। कई बार बसों में मैंने महिलाओं को बेवजह आक्रामक होते, धौंस दिखाते और हाथ उठाते भी देखा है....औऱ सामने खड़ा पुरुष इस वजह से प्रतिकार नहीं कर पाता कि उसे झूठे मामले में फँसाया जा सकता है। 

आप भूल जाइए कि हर महिला कोमल, सत्यवादी और सकारात्मक है। सच तो यह है कि दफ्तरों से लेकर घरों तक में महिलाओं का रास्ता रोकने वाली कोई महिला ही होती है, झूठी खबरें फैलाने वाली कोई महिला ही होती है...तो इनको किस बात की रियायत मिलनी चाहिए। अगर ऋचा दूबे को सुनेंगे तो कहीं से नहीं लगता है कि इस महिला को पश्चाताप है...लगातार वह गालियाँ देते हुए ही बात कर रही है मगर सवाल यह है कि ऐसे अपराधियों को आपके बच्चों के सामने आदर्श बनाया जा रहा है। हसीना, सीमा परिहार, फूलन देवी, सन्तोक बेन जडेजा जैसी औरतें हमारा आदर्श नहीं हो सकतीं और न उनको बनने देना चाहिए। बॉलीवुड अपनी जिम्मेदारी भूल गया है तो कम से कम हम तो याद रखें कि हम आने वाली पीढ़ी को क्या दे रहे हैं।
विकास दूबे पर फिल्म बनाने में बॉलीवुड लग ही गया है...अब बहुत दिन नहीं लगेंगे जब ऋचा दूबे पर भी फिल्म बनेगी और सारा, जाह्नवी या श्रद्धा जैसी नायिकाएँ इसे अपनी प्रेरणा बनाने में जुट जाएंगी। आलिया और शबाना तो यह काम कर चुकी हैं। आपका सारा ढांचा गलत है और आप चाहते हैं कि समाज स्वस्थ बने...यह सोच ही हास्यास्पद है। महिला गैंगस्टरों को कम से कम नायिका मत बनाइए...अगर नायिका बनाना ही है तो विकास की माँ को बनाइए जिसने अपने बेटे की करतूतों का समर्थन नहीं किया बल्कि यह कहा कि उसे गोली मार देनी चाहिए और वह उसे देखने तक नहीं गयी....।
पहले भी कहा है और आज भी कह रही हूँ...अपराधी बनाने के पीछे औरतों की समर्थन करने वाली मानसिकता जिम्मेदार है। अपनी चादर से अधिक पैर फैलाना, पुरुषों पर दबाव डालना औऱ उनके अपराधों का समर्थन करना यही अपराध का आधार है और दुनिया देखने से पहले खुद को देखिए कि कहीं आप भी तो इनमें शामिल नहीं।

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