हवाओं पर मालिकाना हक नहीं चला करते



लड़कियाँ बड़ी सन्तोषी होती हैं...जरा सा प्यार मिल जाए...कोई हँस के दो मीठे बोल भी बोल दे तो बस सब कुछ हार जाती हैं...क्यों हार जाती हैं..? नहीं हारना चाहिए उनको..इस व्यावहारिक दुनिया में सन्तोष कर लेना अच्छी बात नहीं है। जो आपका है, उसे आपके पास होना चाहिए...उस पर आपका अधिकार होना ही चाहिए....हम भंवर में फँसी रह जाती हैं तो इसकी वजह क्या है...असुरक्षा? रिश्ते बचाने के चक्कर में हम अपना अपमान क्यों सह लेती हैं....क्यों गलत को सही मान लेती हैं और अपराध को परिस्थिति का जामा पहना देती हैं...क्यों...कहीं न कहीं क्या हम जिम्मेदार नहीं हैं कि हमारे साथ गलत होता आया और हमने गलत करने वाले को सम्मान दिया...क्यों दिया? नतीजा क्या हुआ...हमारी खामोशी को लोग कमजोरी समझते रहे और हमें प्रताड़ित करना अपना अधिकार...हमारे साथ अन्याय इसलिए हुआ क्योंकि हमने अन्याय होने दिया...।
जब हमारे सामने भाई की थाली में घी से चुपड़ी रोटी दी गयी तो हमने कभी नहीं कहा कि इस रोटी पर हमारा भी अधिकार है...जब हमारे दहेज की तैयारी करने के लिए जमीन गिरवी रखी जाने लगी तो हमने यह स्वीकार किया क्योंकि समाज में परिवार की नाक रखनी थी...पर ये कभी नहीं कहा कि हमें पढ़ना है...आगे बढ़ना है...ये हमारा अधिकार है। जब हमें किसी ने छेड़ा तो हम कभी साथ नहीं आयीं....छेड़ने वाले के कारण हम घरों में कैद होती चली गयीं...किसी ने हमारी पढ़ाई छुड़वा दी तो मन मसोस कर रह गयीं...हमारी किताबों में आग लगाने की बात कहने वालों को हमने सम्मान दिया...यही तो गुनाह है...कभी सोचा है कि कम उम्र में माँ - बाप की इज्जत की खातिर अपने सपनों की बलि चढ़ाने के बाद हमें क्या मिला है....हमने गलती की है...कि हमने हमेशा खुद को नीचे रखा है...सबसे नीचे..और वह हमें धकेलते चले गये....हमें कैद कर देना....उनको अपना अधिकार लगने लगा...जब हम आगे बढ़े तो हमारी नौकरी उनकी प्रतिष्ठा और वर्चस्व के लिए खतरा बनने लगी...उन्होंने षडयंत्र किया और हमने मान लिया कि यही होता है...कभी नहीं पूछा कि ऐसा क्यों होता है...क्यों होना चाहिए...,,ये बहनें ही होती हैं जो आपकी सलामती के लिए दुआ करती हैं...गलत करती हैं....उनकी अपनी रक्षा के लिए आत्मनिर्भर बनना चाहिए...कोई किसी की हिफाजत नहीं करता...वह दरअसल खुद को बचाता है...। उन्होंने कह दिया कि हम प्रेम नहीं कर सकतीं और हमने मान लिया कि हमारे पास दिल ही नहीं है...हम भूल जाएँ...ये गलत है....किसी और की खुशी के लिए उसका दिल तोड़ा जो हमें इन लोगों से ज्यादा चाहता रहा होगा....आप इसे बलिदान कहते हैं...हम इसे खून कहते हैं...अपनी हत्या करना भी पाप है...किसी और के लिए आपने अपने प्रेम का गला घोंटा...ये गलत किया...कोई अपनी प्रतिष्ठा के लिए आपकी बेटी को मारता - पीटता रहा है औऱ उसकी कटी गर्दन लेकर हर जगह घूमता रहा औऱ आप खामोश रहीं...ये आपने गलत किया....किसी ने अपनी हवस के लिए किसी की अस्मत नोंच डाली और आप उसे राखी बांधती रहीं...आपने एक अपराधी का साथ दिया...अपराधी को साथ नहीं सजा मिलनी चाहिए...सजा मिलेगी तभी....सबक मिलेगा...ऐसे क्यों नहीं सोच पातीं हम लड़कियाँ? आपके पति के पीछे लड़कियाँ पड़ी हैं और आप लड़कियों के पीछे पड़ी हैं....कहीं ऐसा तो नहीं कि आपका पति लड़कियों की मजबूरी का फायदा उठा रहा हो..। आप जानती हैं कि आप जिसे दिल दे बैठी हैं औऱ आपको उम्मीद है कि तलाक के बाद वह आपका होगा....आप अपने फायदे के लिए औऱ अपनी सुरक्षा के लिए उसे नहीं छोड़ रहीं तो आप भी अपराधी हैं....ऐसे क्यों नहीं सोच  पाती प्रेमिकाएँ और पत्नियाँ? वह हाथ उठाता है तो चुप क्यों रह जाती हैं लड़कियाँ?
जब भाई सम्पत्ति के लिए लड़ते हैं तो इस समाज को पाप नहीं लगता तो बहनें जब अपना हिस्सा माँगती हैं तो यह सम्मान का प्रश्न क्यों बन जाता है? क्या यह ज्यादा बेहतर नहीं होगा कि उसे दहेज में बरतन औऱ ससुराल को सजाने का सामान देने की जगह उसे पैतृक सम्पत्ति में अधिकार मिले जिससे वह आत्मनिर्भर रह सके? अपना काम शुरू कर सके...आड़े वक्त में अपनी मदद कर सके...मगर आप ऐसा नहीं करते क्योंकि आपको तो बहनों को टरकाना होता है...और आपकी पत्नियों को ननदें आँख का काँटा लगती हैं...क्योंकि बहनों का होना होना उनके बच्चों के भविष्य की राह का रोड़ा समझा जाता है.. हम लड़कियाँ कभी अपने लिए आवाज क्यों नहीं उठातीं...अब तो सेना में भी लड़कियों को स्थायी कमिशन मिल गया है...यानी देश की सीमा पर भी हम लड़कियाँ देश की रक्षा करेंगी तो आप हमारे हाथ में रक्षा सूत्र क्यों नहीं बाँधते...कभी हमारी सलामती के लिए आप भी भूखे रहिए....हमें आपके रुपये...पैसे...नहीं चाहिए....इनसे क्या आप हमारी गुजरी हुई जिन्दगी का मुआवजा दे सकेंगे? लौटा सकेंगे...हमारा वह वक्त. जब हम भी अपनी कम्पनी के निदेशक हो सकते...? आपने तो हमारे पोस्टर फाड़कर फेंक दिये...जिसे हमने अपनी मेहनत से तैयार किया था...हम आपसे किस मायने में कम हैं....ये खुलकर क्यों नहीं कहती लड़कियाँ...क्यों बार - बार कहती हैं कि मम्मी - पापा नहीं मानेंगे...भाई निकलने नहीं देगा...कभी भाई के सामने तो बहनें यह परिस्थिति नहीं लायीं...कि बहनें नहीं निकलने देंगी...कहीं सुना है? आप बहनों के नाम पर शो - पीस क्यों चाहते हैं...? क्यों चाहते हैं कि हम आपकी नाक के लिए अपनी हर खुशी आपके नाम कर दें...क्यों....? बताइए न क्यों....? एक मायके से रिश्ता रखने के लिए अपने अधिकार क्यों खो देती हैं हम लड़किया? क्यों मान लेती हैं कि हमें कुछ नहीं चाहिए...एक बार कहिए कि चाहिए...हमें....अपना अधिकार चाहिए...।
आज तक कभी सुना है कि बाप का कमरा ही बेटे का कमरा होता  है? तो फिर माँ का कमरा बेटी का कमरा ही कैसे हो सकता है? अपने हिस्से का कमरा क्यों नहीं चाहतीं हम लड़कियाँ? आज हम अपने लिए माँगेंगे तो कल समाज खुद देना सीखेगा...स्वीकारना सीखेगा कि लड़कियाँ माँ की छाया नहीं होतीं....गाय नहीं होतीं...पराया धन नहीं होतीं.....उनको दान नहीं किया जा सकता...अगर पुत्र दान नहीं स्वीकार है तो अपना दान कैसे स्वीकार कर सकती हैं हम लड़कियाँ? हम सिर्फ रसोई के अन्दर क्यों रह जाती हैं...क्यों नहीं कहतीं कि हमें टेनिस भी खेलना है औऱ ड्राइविंग भी करनी हैं...क्यों कभी भाई अपनी बहनों की थाली में रोटी नहीं डाल सकता...क्यों उम्मीद की जाती है कि घरों में काम करने के लिए लिए कोई लड़की ही आगे बढ़े...क्यों लड़कों का काम करना माँओं को अपराध लगता है? क्यों माएँ अपने बेटों को बहुओं के लिए तैयार नहीं करतीं....क्यों उसके एक गिलास पानी ले लेने से खुद धन्य समझने लगती हैं..कब समझेंगी हम कि हम मनुष्य हैं...किसी की छाया नहीं. परछाई नहीं...हमारा अपना अस्तित्व है। हमारा अस्तित्व, जिसे हमसे कोई नहीं छीन सकता...क्यों इतनी सन्तोषी होती हैं हम लड़कियाँ...क्यों अपना हक छोड़ देती हैं हम लड़कियाँ? माँगिए जो आपका है....क्यों आपके पास होगा..तभी तो आप दे सकेंगी...माँगिए क्योंकि जिस घर में आपने जन्म लिया है....वह आपका भी है...आपके बाद आने वाली किसी भी औरत और उसके बच्चों से ज्यादा....किसी को इजाजत नहीं होनी चाहिए कि वह आपके कमरे को आपसे छीन ले....माँ का कमरा ही आपका कमरा नहीं है...आपका कमरा...आपका कमरा है...आपका घर आपका घर है...आप किसी भी घर से ज्यादा जरूरी हैं....मत लीजिए किसी से कोई वचन कि वह आपकी रक्षा करेगा...आप खुद अपनी रक्षा कीजिए और जरूरत पड़े तो उसकी भी जो आपकी रक्षा करने के दम्भ में जी रहा है और खुद को आपका मालिक समझ रहा है....बता दीजिए कि आप हवा हैं....आजाद आसमान हैं.....। बता दीजिए कि हवाओं पर मालिकाना हक नहीं चला करते.....जो हक चलाता है, वह टूटी डाल की तरह गिरता है और हवाओं पर हक जताने वालों के गिरने का समय है। आइए...उड़ जाती हैं हम लड़कियाँ..क्यों कि हमसे ही दुनिया है..हमसे ही जमीन है और हमसे ही आसमान है। 

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