अकबर महान नहीं था और जोधाबाई स्त्रियों की विवशता का प्रतीक भर हैं


साम्प्रदायिक सौहार्द बनाये रखने के चक्कर में शोषण की कहानियों को दबा दिया जाता है। अब तक अकबर को महान शासक बताया जाता रहा है...हम मानते भी रहे मगर हकीकत यह है कि अकबर एक अय्याश, स्वार्थी और लालची शासक था...। जिस जोधा के साथ उनके प्रेम के कसीदे पढ़े जाते हैं....वह अपने पिता की महत्वाकाँक्षा की शिकार रही...जैसा कि होता आया है...अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए बेटियों को दान किया जाता रहा है...हर हारने वाले ने अपनी बेटियाँ ही दान में दी...कभी बेटों को दांव पर नहीं लगाया...इतिहास के टुकड़ों को जोड़िए तो औरतों की जो हालत थी...उसे देखकर दिल दहल जाता है। वह एक सम्पत्ति से अधिक कुछ नहीं...उसका अपना अस्तित्व नहीं...अपना जीवन नहीं...वह एक वस्तु है...जिसमें घर से लेकर घरानों ने अपनी इज्जत खोज ली...शत्रु के हाथों से बचने के लिए उसे आग में या तो जल मरना होता है या पति के साथ मर जाना होता है और अगर वह मीरा बन गयी...तो जीवन भर यंत्रणा सहनी होती है। 

राजस्थान ही नहीं...समूचे भारत की पितृसत्तात्मक परम्परा को अपनी मूँछों से कितना लगाव है...यह छुपा हुआ नहीं है। औरतों के आग में जल मरने की कहानियों में गौरव खोजने वालों ने उसमें औरतों की व्यथा नहीं देखी...ये माइंडवॉश गजब का है...एक रोबोट जिसमें ऐसी सोच भर दी गयी हो...वीरांगनाओं ने लड़ना नहीं सीखा...जलकर मर जाना सीख लिया...ये वीरता है या दुर्दशा के भय से अपनी जान लेना... ऐसी राजपूती परम्परा की वीरता का स्वाद कसैला कर देती हैं जोधा बाई। जोधा बाई..जिसके अस्तित्व को झुठलाने की कोशिश में तमाम अकड़ने वाले जी - जान से लगे हैं...क्योंकि जोधा का होना याद दिला देता है कि राजपूतों ने मुगलों के आगे कैसे घुटने टेके...कैसे एक पिता ने अपना राज बचाने के लिए अपनी 13 साल की बेटी को दांव पर लगा दिया...इतिहास किसी का भी हो...वह बिल्कुल सफेद कभी नहीं होता...वह स्याह भी होता है..। 

अकबर के गले पर खंजर लगाए वीरांगना किरण देवी हैं जो महाराणा प्रताप के भाई शक्ति सिंह की बेटी थीं। मीना बाजार में किरण देवी को देख उनके रूप पर मोहित होकर अकबर ने अपने सैनिक भेजे और किरण देवी को बलात उठवा लिया। फिर जो हुआ वो तस्वीर में देखिए। इसके बाद अकबर ने माफी मांगी।

यह एक सच है कि राजपूती शासकों ने मुगलों और अंग्रेजों का साथ दिया है..मुगलों के दरबार में सलामी दी। इतिहास में ऐसे बहुत से चरित्र हैं जो स्वार्थ की पूर्ति नहीं करते तो उनको दरकिनार कर दिया जाता है और राजपूतों के लिए जोधा ऐसा ही चरित्र है...एक व्यक्ति के दो नाम हो सकते हैं...औऱ मरियम उज जमानी कोई नाम नहीं बल्कि एक उपाधि हुआ करती थी। जहाँगीर के जन्म के समय जोधा को अकबर ने यह उपाधि दी थी क्योंकि उसने मुगलों की वंश परम्परा को आगे बढ़ाया था...। जोधा के पिता आमेर के राजा भारमल का इतिहास उठाकर देखिए...वह एक स्वार्थी और लालची व्यक्ति ही है...तो उसके लिए मुगल बादशाह के हाथ में बेटी को सौंपना कौन सी बड़ी बात रही होगी?
जोधाबाई का महल, 

अकबर को महान बनाने वालों ने कहानियाँ तो गढ़ीं पर उसके कारनामों को दबा दिया। एक पिता द्वारा दांव पर लगायी गयी और मुगल बादशाह को सौंपी गयी जोधा के पास तीसरा रास्ता कौन सा था कि वह जाती और कहाँ जाती? वह कितनी बेबस थी...इसे देखिये...अकबर जोधा के चयन का मामला ही नहीं, अकबर से विवाह उसकी यंत्रणा थी, मजबूरी थी....और कहानियाँ बनाने वालों ने उसे महान प्रेमिका बना दिया....फतेहपुर सीकरी में जोधा के नाम से जो महल है...उसे अकबर ने नहीं बनवाया...वह जहाँगीर ने बनवाया औऱ मुगलों के हरम का हिस्सा है। यदि जोधा ने कुछ अर्जित किया भी तो वह उसकी अपनी किस्मत है जिसे उसने स्वीकार किया होगा...मुगल काल की पेंटिंग्स देखिए और कल्पना कीजिए कि स्त्रियों की क्या स्थिति थी...अकबर के शासन में ही मीनाबाजार लगा करता था...अकबर समेत तमाम मुगल शासकों के लिए कोई भी स्त्री वस्तु से अधिक नहीं थी औऱ जो स्त्री पसन्द आ जाती, वह उसे हासिल कर लेना चाहता था...हासिल किया भी और कई बार ऐसा भी हुआ कि उसकी दाल नहीं गली। 

उसकी नजर ओरछा के राजा इन्द्रजीत की प्रेयसी राय प्रवीण पर थी. उसके कारण रानी रूपमती को आत्महत्या करनी पड़ी। रानी दुर्गावती को मुगल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था। उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा। रानी ने यह मांग ठुकरा दी। इस पर अकबर ने अपने एक रिश्तेदार आसफ खां के नेतृत्व में गोण्डवाना साम्राज्य पर हमला कर दिया। एक बार तो आसफ खां पराजित हुआ, पर अगली बार उसने दुगनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोला। दुर्गावती के पास उस समय बहुत कम सैनिक थे। उन्होंने जबलपुर के पास नरई नाले के किनारे मोर्चा लगाया तथा स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया। इस युद्ध में 3,000 मुगल सैनिक मारे गये लेकिन रानी की भी अपार क्षति हुई थी। कहा जाता है कि अकबर के हरम में 5 हजार औरतें थीं...ऐसे शासक को महान साबित कर देना क्या इन औरतों के साथ हुए अन्याय का समर्थन करना नहीं है...हमेशा की तरह मुगल काल में भी औरतें एक वस्तु या कमोडिटी से ज्यादा कुछ नहीं थीं...आप अगर जोधा को खारिज करते हैं तो अपने यह सिर्फ अपने अपराधों पर परदा डालने की कोशिश है...अगर महाराणा प्रताप और एैसे ही कुछ राजपूत योद्धाओं को छोड़ दिया जाये तो अकबर का काल राजपूतों के पतन का प्रारम्भ काल है और इस सच को झुठलाया नहीं जा सकता और यह भी कि साम्प्रदायिक सौहार्द की चाशनी में महिलाओं के साथ हुए अन्याय और अकबर की अय्याशी को अनदेखा नहीं किया जा सकता।


स्त्रोत साभार - विकिपीडिया

हिन्दी गपशप, 

करियर ट्यूटियल डॉट इन

हिस्टॉरिकल सागा

भारतकोश

तस्वीरें - इंटरनेट से


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