होलिका....पितसत्ता का उपकरण बनने वाली स्त्रियों की नियति है



होली का त्योहार मनाया जा रहा है...होलिका जलायी जा चुकी है...वैसे तो दशहरे पर रावण भी हर साल जलता है...मगर उसकी वाजिब वजह है...होलिका हो शूर्पनखा हो...दोनों ही तो भाइयों की महत्वाकाँक्षा की बलि चढ़ गयीं। दोनों को ही इस्तेमाल ही किया गया...देखने वाली बात यह है कि पितृसत्तात्मक व्यवस्था का हथियार बनने वाली औरतों की नियति यही होनी थी..यही हुई। अगर इतिहास को देखा जाये तो पुरुषों के अहंकार के साथ ही  पितृसत्ता को प्रश्रय देने वाली स्त्रियों ने ही युद्धों की पृष्ठभूमि रची है और सीता हो या द्रोपदी के सिर पर दोष हमेशा से मढ़ा जाता रहा है। साहसिक अवतार वाली स्त्रियों को समाज ने हाशिये पर डाला है।

हम होलिका की ही बात करें...यह सच है कि प्रह्लाद को लेकर गोद में बैठी और अति आत्मविश्वास इसका एक बड़ा कारण था लेकिन होलिका के पास क्या दूसरा विकल्प था...सत्ता से तो सबको भय रहता है..मरना तो उसे था ही मगर आप खुद प्रह्लाद की हत्या के षडयंत्र में भागीदार बनने का कारण क्या सिर्फ उसका निहित स्वार्थ था या भाई की सत्ता को बरकरार रखने की जिद या राजाज्ञा का भय...कारण जो भी हो..हम होलिका को विक्टिम नहीं मान सकते...वह उपकरण मात्र थी...हिरण्यकश्यपु की अदम्य लालसा और उसके अहंकार का...

होलिका हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप नामक योद्धा की बहन और प्रह्लाद नामक विष्णु भक्त की बुआ थी। जिसका जन्म जनपद- कासगंज के सोरों शूकरक्षेत्र नामक पवित्र स्थान पर हुआ था। उसको यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी। इस वरदान का लाभ उठाने के लिए विष्णु-विरोधी हिरण्यकश्यप ने उसे आज्ञा दी कि वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश कर जाए, जिससे प्रह्लाद की मृत्यु हो जाए। होलिका ने प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया। ईश्वर कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई। होलिका के अंत की खुशी में होली का उत्सव मनाया जाता है जबकि उत्सव तो हिरण्यकश्यपु के अंत का मनाया जाना चाहिए..यह उन औरतों को सोचना चाहिए जो होलिका की तरह अन्याय का साथ सम्बन्धों के नाम पर तो कभी भय के कारण देती हैं...होलिका उनके लिए सबक है। 

अब बात करते हैं शूर्पनखा की...रामायण जब भी देखिए तो सीता -हरण के पीछे रावण का तर्क यही रहा कि उसने अपनी बहन के अपमान का प्रतिशोध लिया...यही तर्क खलनायक की पिटाई के पीछे हिन्दी फिल्में देती हैं और फिल्म के नायक की हिंसा को ग्लैमराइज किया जाता है...। खानदान की इज्जत तो कभी साम्राज्य का सम्मान..शूर्पनखा से लेकर सीता और द्रोपदी के नाम पर जो महायुद्ध हुए...उसमें असल कारण तो यह भी था...बहनों के लिए कौन किसका दुश्मन बनता है...वह भी उस समाज में जहाँ सम्मान की तथाकथित रक्षा के लिए ऑनर किलिंग हो जाती हो या लड़कियों की पढ़ाई या नौकरी छुड़वा दी जाती हो...वहाँ बहनों और बेटियों को लेकर जिस प्रकार की क्रूरता दिखती है...उसमें प्रेम तो कहीं नहीं होता...अपनी नाक कटने की पीड़ा अधिक होती है क्योंकि पितृसत्ता में स्त्री या तो उपकरण है या फिर सम्पत्ति...और सम्पत्ति है इसलिए उससे प्रेम नहीं होता मगर छिन जाने की आशंका होती है...स्त्री में ही खानदान की इज्जत भर दी जाती है...यहाँ सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या लड़के खानदान की इज्जत नहीं होते? लड़कियों को दुप्पटा ठीक से लेने वाले लड़के अगर अपनी शर्ट के बटन ठीक करना सीख जाते तो क्या चीजें आसान नहीं होतीं? ये कैसा आचरण है कि लड़कियों के पैर दिखने में दिक्कत है पर आपको सोशल मीडिया पर अर्द्धनग्न तस्वीरें डालने वाले लड़के सामान्य लगते हैं? विषयान्तर नहीं करते हुए हम वापस शूर्पनखा की ओर लौटते हैं..शूर्पनखा के कंधे पर अपने अहंकार का अस्त्र चलाने वाले रावण ने सीता का हरण अपनी लिप्सा के लिए ही किया था...क्योंकि जिसके अधीन खुद देवता हों...वह इतना तो बेवकूफ नहीं होगा कि वह सही या गलत पहचान न सके...और शूर्पनखा ने भी अपना प्रेम ही निभाया था क्योंकि उसने भी अपने हिस्से का प्रतिशोध ही लिया था और बीच में पिस गयी सीता। देखा जाये तो द्रोपदी भी कौरवों और पांडवों की द्वेषाग्नि में ही झुलसी थी वरना क्या वह पांडवों की पत्नी नहीं होती...तो भी दुर्योधन उसका अपमान करता...दरअसल, दुर्योधन ने भी पांडवों के साथ दुश्मनी निकालने के लिए ही द्रोपदी को चुना था और इसका बड़ा कारण स्वयंवर में उसकी पराजय भी थी...। शूर्पनखा के जीवन में पीड़ा हमेशा रही। कहा जाता है कि विद्युतजिव्ह राजा कालकेय का सेनापति था. रावण हर राज्य को जीतकर अपने राज्य में मिलाना चाहता था इस कारण रावन ने कालकेय के राज्य पर चढ़ाई कर दी थी. कालकेय का वध करने के बाद रावण ने विद्युतजिव्ह का भी वध कर दिया था. कहा जाता है कि रावण ये बात नहीं जानता था कि उसकी बहन कालकेय सेनापति विद्युतजिव्ह से प्रेम करती है, इस वजह से रावण ने उसका भी वध कर दिया. जबकि कई पौराणिक कहानियों में माना जाता है कि रावण जानता था कि उसकी बहन को विद्युतजिव्ह से प्रेम है इसी कारण उसने उस योद्धा की हत्या कर दी। शूर्पणखा को जब अपने भाई के इस कृत्य के बारे में पता चला तो वो क्रोध और दुख के मारे विलाप करने लगी और उसने दुखी मन से रावन को श्राप दिया कि मेरे कारण ही तुम्हारा सर्वनाश होगा और इस तरह वह भी रावण की सत्ता का एक टूल बनकर रह गयी। सीता की अन्य बहनें तो नाम बनकर ही रह गयीं... कभी - कभी सुभद्रा का जिक्र होता है मगर राम की बड़ी बहन शांता को दरकिनार किया गया...लिखने वालों ने इतिहास के साथ खूब मनमानी की है।

कौरवों - पांडवों की बहन दुःशला के बारे में बात नहीं होती..बात होती है उन स्त्रियों की, जिन्होंने पूरक बनना स्वीकार किया...अपने अधिकारों को लेकर आवाज नहीं उठायी...अन्याय को नियति समझकर स्वीकार किया। महत्वाकांक्षी बहनों को भाई कभी पसन्द नहीं करते...इतिहास में रजिया सुल्तान का जीवन इसका साक्षी है। पिता ने तो विश्वास किया मगर रजिया सुल्तान को षडयंत्र का शिकार होना पड़ा...। कभी इतिहास के पन्ने पलटिए या सुनहरे परदे पर नजर दौड़ाइए....आत्मनिर्भर...खुद मुख्तार...स्पष्टवादी बहनों को समाज ने स्वीकार नहीं किया...अगर वह भाई से मेधावी और सफल निकली तो अच्छे से अच्छे महापुरुष भी उसकी योग्यता को पचा नहीं पाते...रवीन्द्रनाथ ने क्या कभी अपने घर की स्त्रियों को प्रतिभा को सामने लाने का प्रयास किया...स्वर्ण कुमारी देवी को हम कहाँ सेलिब्रेट करते हैं.....विजयलक्ष्मी पंडित की सफलता को कितनी बार हमने स्वीकारा है...दरअसल, हमारी बुनियाद ही गड़बड़ है...और कुछ सामाजिक स्वीकृति का लोभ कि बहनों को अपने हक की बात कहना भी गुनाह लगता है...वह कभी सवाल नहीं करतीं....उनको गाय की परिभाषा में शालीनता दिखती है...मगर उसकी लाचारी नहीं दिखती...कभी गाय से ही पूछ लीजिए क्या वह खूँटे से बंधना पसन्द करती है या उसे स्वतंत्र होकर विचरना पसन्द है...आपको यह असामान्य क्यों नहीं लगता कि अपने ही घर में अपने ही समकक्ष किसी व्यक्ति के सामने आपको सिर झुकाकर निर्जीवों की तरह रहना पड़े..या आपके जीवन को नियंत्रित किया जाये...आपके लिए आजादी इसलिए बुरी चीज है क्योंकि आप खुद गुलाम हैं....पितृसत्ता के हाथ में खिलौना बनने वाली स्त्रियों के साथ यही होना चाहिए जो होलिका के साथ हुआ...तो आप चाहे जिस किसी रिश्ते से बंधी हैं....अगर आपमें मनुष्यता नहीं है तो फिर आपकी नियति भी वही है....मगर हाँ....होलिका के साथ अगली बार हिरण्यकश्यप का दहन होते हम जरूर देखना चाहेंगे और तब होली के रंग शायद और चटख हो उठेंगे।

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