मंदारमनी और सरप्राइज पार्टी वाली यादें...

 



हाँ...घूमना तो पसन्द है और समन्दर से बहुत लगाव है...ऐसा लगता है कि जैसे वह हर बार बुलाता रहा है...कोरोना के प्रकोप के कारण कोलकाता के बाहर निकलना नहीं हुआ। इस बार भी जाना लगभग अचानक ही हुआ,,,पिछले कुछ दिनों से कोरोना से परेशान उकताए लोगों को सोशल मीडिया पर तस्वीरें चिपकाते देख रही थी...तब भी मन नहीं हुआ। इसके पहले अपनी सहेली नीलम के साथ जा चुकी थी मंदारमनी....फिर क्यों...ऐसा लगा कि बस अब...निकल ही पड़ना चाहिए...तो हम निकल पड़े और मौका भी ऐसा मिल गया। 

अप्रैल में आता है जन्मदिन हमारा...इस बार हमने अनायास मन बना लिया कि कुछ अपने लिए स्पेशल करना है...खुद को दुलार करना है....पहले अकेले जाने की ही तैयारी थी...लेकिन फिर लगा...कि इस बार भी किसी दोस्त को साथ लिया जायेगा औऱ यह निर्णय चामत्कारिक ही था...दरअसल, कहीं बाहर न निकल पाने के कारण कुछ अच्छा नहीं लग रहा था और लग रहा था कि एक मी टाइम बहुत जरूरी हो गया है।

पापिया....जिसे सब पीहू पापिया...के नाम से जानते हैं....मैंने...उसे कारण भी बता दिया...वह नौकरी भी करती है तो व्यस्तता भी थी....लेकिन घुमक्कड़ वह भी अपने जैसी ही है औऱ मेरी तुलना में तो बहुत ज्यादा घूम चुकी है....। इंटरनेट का धन्यवाद...इस बार भी गोआईबीबो पर रिसॉर्ट बुक किया....और शायद ऊपरवाला भी मुझे तोहफा ही देना चाहता था....एकदम किफायती कमरा और समुद्र के पास मिल भी गया...हमने सोनार बांग्ला रिसॉर्ट बुक किया था.....और रेड बस से बस बुक की।

तो 7 अप्रैल को अपने जन्मदिन की सुबह 6 बजे हम धर्मतल्ला पहुँच गये...पापिया सुबह की पहली ट्रेन लेकर हाजिर थी...6.20 में बस चल पड़ी और सफर के दौरान 90 के दशक के गीत बस में बज रहे थे...और मैं एक जैसी भारी साड़ियाँ, लकदक गहनों से सजी नायिकाओं को देखकर उकता गयी थी और उसमें बीच - बीच में खिड़की का परदा हटाकर नजारे देख रही थी...पापिया कभी जाग रही थी तो कभी थकी होने के कारण सो भी जा रही थी...बस में घुसते ही चॉकलेट का डिब्बा मैडम ने थमा दिया था...वैसे चॉकलेट मैं खाती नहीं हूँ। बीच में कोलाघाट में बस रुकी....और बादाम का पैकेट लेकर मैं वापस बस पर आ गयी थी...उतरने का मन नहीं था।

सुबह 10.30 बजे हम चालखोला में थे और ऑटो रिजर्व करके हम रिसॉर्ट की तरफ चल पड़े थे....नन्दीग्राम की हवा का असर यहाँ भी था। लोगों ने बताया कि दीदी को चोट तो लगी थी मगर जिस तरह उन्होंने ठीकरा नन्दीग्राम की जनता पर फोड़ा..वह सही नहीं था....हरियाली देखते हुए हम बढ़ रहे थे...राजनीति के साथ विकास को लेकर बात हो रही थी और बातों - बातों में हम रिसॉर्ट पहुँच भी गये....।

संयोग से रिसार्ट के मैनेजर पापिया मैडम के मुँहबोले भ्राता श्री राजू दास निकल गये...और मैं बहुत खुश...दोनों भाई - बहन को मिलवा दिया...मगर अभी जो होने जा रहा था...उसकी तो मैंने कल्पना ही नहीं की थी...कमरे में घुसी...पूरा कमरा रंग - बिरंगे गुब्बारों से सजाया गया था...बिस्तर पर हैप्पी बर्थ डे लिखकर सजाया गया था....मैं अवाक्....मेरी जिन्दगी में कभी ऐसी सरप्राइज पार्टी मिली ही नहीं थी...समझ में ही न आए कि मैं करूँ तो क्या करूँ...कभी गुब्बारे देखती,...कभी कमरा देखती...कुछ समझ नहीं आया तो चुपचाप बिस्तर पर बैठ गयी...आँखें अनायास ही छलक पड़ी...भावुक तो मैं ऐसे ही हूँ और ऐसा तोहफा....10 मिनट तक यूँ ही बैठी रही...फिर जरा सी सामान्य हुई तो पता चला कि बुकिंग के दौरान जो नम्बर मिला था...उस पर बात करके पापिया ने यह सब इन्तजाम करवाया था और पूरा रिसॉर्ट इसमें शामिल था...खैर...यादगार अनुभव देने के लिए सभी का शुक्रिया...हम थक गये थे...हाथ -मुँह धोकर हम नीचे खाने आ गये...समन्दर का पिछला तट हमारे कमरे से दिखता था...यानी कमरा भी खास ही मिला था और यह सब पापिया के कारण था..। भाई राजू दास को बहुत शुक्रिया अपना।

शाम को समन्दर तट पर हम हाजिर थे....कविता पढ़ी. कविता सुनी...सीपियाँ चुनी...खूब अठखेलियाँ कीं....लगभग एक - डेढ़ घंटे तो हम थे ही वहाँ....निकलने का मन ही नहीं था...पर शाम ढलने लगी तो वापस आ गये...फिर स्नान करके...औऱ पैरों में भरी रेत साफ करके हम फिर समन्दर किनारे आ गये,...यहाँ गरमा - गरम चाय का आनन्द लिया..अन्धेरा होने के कारण शूट करना कठिन था...फिर भी समन्दर के पास थोड़ी देर बैठे...और वापस रिसार्ट लौटे...भाई साहब...केक लेकर तैयार थे...तैयारी थी कि रिसार्ट में जो हट होती है...वहाँ केक कटेगा मगर हवा इतनी तेज कि यह योजना तो धरी की धरी रह गयी और आखिरकार कमरे में ही केक काटा गया....अरसे बाद जिन्दगी में इतना सुकून मिल रहा था...इतना दुलार मिल रहा था...फोन पर बधाई सन्देश आ रहे थे पर किसी से कुछ बोलने का मन नहीं था...मैं इन लम्हों को जीना चाहती थी....बीच - बीच में फोन देखती पर उस दिन तय किया कि अब जो भी करना है,...बाद में होगा...उस रात बालकनी में खूब गप हुई....।

अगली सुबह 8 अप्रैल को हम फिर समन्दर के पास थे....पिछली शाम की तरह इस बार भी तस्वीरें लीं....खूब मस्ती की....औऱ तैयार होकर आ गये...मुझे मंदारमनी में बन रहा नया मंदिर कवर करना था...शॉपिंग का वीडिय़ो लेना था...तो नाश्ते के बाद हम समुद्र तट के पास स्थित बाजार पर थे...चाय पी और खरीददारी की...। निश्चित रूप से पहले की तुलना में मंदारमनी के बाजार बहुत बेहतर हुए हैं और व्यवस्थित भी हुए हैं...। यहाँ के बाजारों में हस्तशिल्प का लगभग हर सामान बहुत किफायती कीमत पर मिलता है पर आपको जरा सा मोल - भाव तो करना ही होगा। लोग यहाँ राजनीतिक स्तर पर बहुत मुखर नहीं थे....या यूँ कहें कि चुप्पी वाली समझदारी उनको पसन्द होगी। मेरा बैग जवाब देने लगा था तो एक बैग लिया...जो सीपियाँ चुनीं थीं...उसे सहेजा....सामान ठीक किया और नीचे आ गये...।  इस दौरान रिसार्ट के हर सदस्य का व्यवहार बहुत ही सौहार्दपूर्ण रहा और जगह ऐसी कि बार - बार आने को मन करे। मुख्य बीच रिसार्ट से 3 -4 मिनट की दूरी पर है...पर समन्दर के पास चलते हुए यह दूरी महसूस नहीं होती। पापिया ने टोटो रिक्शा का नम्बर ले लिया था तो सबको धन्यवाद देकर हम वापस अपने कोलकाता की ओर थे। बस में वापसी का अनुभव अच्छा नहीं रहा...वही घटिया गीतों के कारण ....जिसे बंद करवाना पड़ा मजबूरन...पर जो भी हो....समन्दर हमेशा भाता है...और मंदारमनी से तो जैसे प्रेम ही हो गया है....पर इस बार कहीं और....कब...कैसे...यह तो समय तय करेगा मगर अभी जो स्थिति है...उसे देखकर अपना अनुभव तो वरदान ही लग रहा है मुझे...


वीडियो देखें 



मंदारमनी के बारे में

पूर्व मिदनापुर जिले में यह जगह बंगाल की खाड़ी के उत्तरी ओर है और यह तेजी विकसित हो रहा रिसॉर्ट गाँव है। कलकत्ता हवाई अड्डे या दमदम एयरपोर्ट से कोलकाता - दीघा रूट पर बसा मंदारमनी लगभग 180 किमी दूर है। रेड क्रॉब यहाँ मिलते हैं..यहाँ समुद्र तट पर फोटोग्राफर रहते हैं अगर आप तस्वीरें खिंचवाना चाहें...

आप ट्रेन या बस से जा सकते हैं पर कोलकाता से जा रहे हैं तो बसें बेहतर विकल्प हैं..चालखोला स्टैंड पर मंदारमनी के लिए ऑटो उपलब्ध हैं। समुद्र तट पर अभी बहुत भीड़ - भाड़ नहीं है तो सप्ताहांत में जाने की सोच रहे हैं तो आपकी छुट्टियों के लिए यह एक अच्छी जगह है।

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