किचेन पॉलिटिक्स.. शातिर घरेलू औरतों के खिलाफ मोर्चा खोलना जरूरी है



किचेन पॉलिटिक्स...सुनने में बड़ा अजीब लगता था। रसोई और राजनीति..इनका क्या सम्बन्ध हो सकता है..रसोई में तो अन्नपूर्णा का निवास होता है। अब अन्नपूर्णा क्या जानें कि उनका प्रतिरूप कहलाने वाली स्त्रियाँ रसोई को हथियार बना सकती हैं और जिस भोजन को अमृत कहा जाता है, उसे अपने व्यंग्यबाणों से विष बनाने की कला भी जानती हैं। आमतौर पर इस देश में किसी भी गृहिणी को या तो बहुत उपेक्षा से देखा जाता है या फिर बहुत ही आदर से। इतना विश्वास या यूँ कहें कि अन्धविश्वास किया जाता है कि वह कुछ गलत कर सकती है या षडयंत्र रच सकती है...यह सोचना भी पाप लगता है लेकिन सत्य कुछ और है। यह स्त्रियाँ कुछ भी कर सकती हैं। वर्चस्ववादी राजनीति सिर्फ दफ्तरों या सियासत में नहीं होती बल्कि यह कहीं भी हो सकती है, घरों में हो सकती है और रसोई उसका शस्त्र होती है। 

क्या अन्न का उपयोग ब्लैकमेलिंग के लिए, नीचा दिखाने के लिए या घर की सत्ता हासिल करने के लिए हो सकता है? हम विश्वास नहीं करना चाहते पर ये हो भी सकता है, होता है और होता चला आ रहा है। सास और ननदों से परेशान बहुओं को आप देखते आ रहे हैं...ससुराल में बेटियों का उत्पीड़न भी आपने सुना है लेकिन क्या आप यह विश्वास करेंगे कि किसी बहन का उत्पीड़न उसके ही घर में सम्भव है। हम सब जानते हैं कि यह होता है और बचपन से ही बहनें भाइयों को मिलने वाले प्रेम से जन्मी उपेक्षा झेलती हैं मगर हम इस समस्या को समस्या मानते ही नहीं हैं। अक्सर घर और परिवारों में छोटे बच्चों की स्थिति किसी कचरापेटी की तरह ही होती है, शब्द बहुत कड़वा है मगर यही सही है। माता - पिता का प्रेम इस बात से तय होता है कि कौन सा बच्चा उनको कितना लाभ पहुँचा सकता है। बड़े भाई बहनों के छोड़े हुए कपड़ों से लेकर छोड़ी हुई आलमारी और बचा - खुचा प्यार ही उनके नसीब में होता है और कई बार वह भी नहीं होता।

 माएँ खास तौर पर पुत्र मोह में इतनी अन्धी हो जाती हैं कि वह उनके खिलाफ कुछ भी नहीं सुनना चाहतीं और कोई बच्चा विरोध करता है तो वह उसे अपना ही शत्रु मान लेती हैं और ममता की जगह शत्रुता आपत्ति करने वाले बच्चे के हिस्से में आती है। अगर कोई बच्चा लीक से हटकर चलता है तो माता - पिता के आँखों की किरकिरी बन जाता है और भाई -बहन इसी बात का फायदा उठाते हैं। विशेषकर माँओं को दुलार पाने की आदत होती है, तो बच्चा भले ही 56 की उम्र का हो लेकिन वह हर घड़ी माँ - माँ की रट लगाकर, उसे दुलार देकर, उसे घेरे रहकर आसानी से अपने छोटे भाई - बहनों का शोषण कर सकता है, उनके अधिकारों और सम्पत्ति पर भी कब्जा कर सकता है। इसका आर्थिक पक्ष यह है कि खुद को बेचारा बेटा दिखाकर, घर के कामों का हवाला देकर आसानी से अपनी एक श्रवण कुमार इमेज बनायी जा सकती है। ऐसी स्थिति में माँओं की स्थिति एक माउथपीस से अधिक नहीं होती। ऐसा व्यक्ति कुछ कहता नहीं है, बस किचेन पॉलिटिक्स में एक मोहरा होता है और कई बार खिलाड़ी भी होता है। कभी वह माँओं को इस्तेमाल करता है तो कभी वह अपनी पत्नी का सहारा लेता है। वर्चस्ववादी घरेलू शातिर औरतें इस स्थिति का फायदा उठाना बखूबी जानती हैं। सास और पति को प्रभावित कर अपने छोटे देवरों और ननदों को दबाना, उनको छवि बिगाड़कर उनको खलनायक साबित करना इनके बाएं हाथ का खेल होता है।

किचेन पॉलिटिक्स की ऐसी शातिर खिलाड़ी महिलाओं की खासियत होती है कि जो उनका निशाना होता है, यानी जिससे भी वे असुरक्षा महसूस करती हैं या जिनसे उनको टक्कर मिलने की आशंका रहती है या फिर जो उनसे बेहतर होते हैं, खासकर ननदें, ये उसकी सबके सामने सेवा करती हैं, ख्याल रखती हैं और बताती हैं कि ख्याल रखती हैं, हर बार अहसान जताती हैं और तंज भी कसती हैं,,,यानी तीन तरफ से वार होता है और अगर ननद या देवरानी उनसे 20 हुई या कामकाजी हुई तब तो इनके शातिर दिमाग में खुराफात चलती ही रहती है। कामकाजी महिलाओं के पास ऐसे भी समय नहीं होता, कई बार वह निर्भर भी होती हैं और कई बार वह जानते - बूझते हुए भी कोई प्रतिक्रिया नहीं देतीं। कारण यह है कि उनको आगे बढ़ने के लिए मानसिक शांति की जरूरत होती है और घर में समय न दे पाने का अपराधबोध भी उनको सालता है तो एक मानसिक दबाव या ग्लानि भी होती है।

बस इसी मानसिक स्थिति का फायदा ऐसी घरेलू शातिर औरतें उठाती हैं। पूरे समाज के सामने वह एक आज्ञाकारी बहू हैं, सास की नजर में लक्ष्मी हैं. पति उन पर निर्भर हैं और यही कारण है कि वे रसोई के माध्यम से अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहती हैं। इसी साम्राज्यवादी सोच के कारण वह अपनी रसोई में किसी को आने नहीं देना चाहतीं. कोई कुछ दिन वहाँ काम करे तो बहाने से हटा देना चाहती हैं। वह यह दिखाती और जताती हैं कि सारे काम वह खुद करती हैं, सफाईमेनिया की शिकार यह औरतें खुद को सुधड़, होनहार और विनम्र साबित करने में बहुत कुशल होती हैं। चेहरे पर भोलापन लिए बैठी इन औरतों का असली खेल वह ननदें जानती हैं या वह शख्स जानता है लेकिन इनकी सीता सुकुमारी वाली छवि ऐसी बना दी जाती है कि शिकायत करने वाला ही खलनायक साबित कर दिया जाता है। 

जो खेल परदे के पीछे या अप्रत्यक्ष रूप से चलता है, वह यह है कि कई बार बैग उठाकर बाहर जाने का ताना मिलता है, यह ताना मारा जाता है कि उसके जैसी लड़की घर के काम निपटाकर दफ्तर में नौकरी करती हैं। सारा दिन बाहर रहती हो, घर में हो तो थोड़ा काम किया करो। बाकी सब तो खा लेंगे, यही नहीं खाती हैं तो बनाना पड़ता है। भले ही आपने कोई फरमाइश नहीं की हो मगर आपका नाम लेकर वह चीज बनेगी, सारा घर खायेगा मगर अहसान आप पर जताया जायेगा। हो सकता है कि आप काम करके थकी मांदी घर जायें तो आपको खाने के लिए कुछ न मिले। आपको कुछ कहा नहीं जा रहा मगर आपको कुछ दिया भी नहीं जा रहा...अगर कुछ दिया जा रहा है तो वह यह कहकर कि उनके पति ने कितने श्रम से यह किया है। हर बात में....हमारी तो जुबान नहीं खुलती थी भाइयों के आगे, मेरे मायके में तो यह नहीं होता, जबान कैंची की तरह चलती है। बैग उठाकर चल देती हैं और हम नौकरानी की तरह खटते रहते हैं, इनके हाथ में हमेशा एक पोंछा रहता है और आपको नाकारा साबित करने के लिए हल्का सा अन्न भी गिर जाये तो उसे पोंछा जाता है, आपको दिखाकर डिब्बे साफ किये जाते हैं और इस मानसिक दबाव में आप भी डिब्बे साफ करने में एक लम्बा वक्त गुजारती हैं। वह आप पर हावी होने की कोशिश करती हैं, खुद को विक्टिम और आपको उसका कारण बताने का एक भी मौका, मजाल है कि हाथ से छूट जाये, शतरंज की असली खिलाड़ी यही हैं और बाकी उनके मोहरे हैं। किचेन पॉलिटिक्स में यह चलता है कि ये औरतें काम का रोना भी रोती हैं और किसी का काम में हाथ बँटाने भी नहीं देतीं। यह काम साझा नहीं करतीं और आप पर हावी होने की कोशिश करती हैं। आपको मानसिक तौर पर इतना परेशान किया जायेगा कि आप घर से कटने लगते हैं, कई बार अवसाद में आने लगते हैं और आपको घमंडी करार दिया जाता है। कब आपकी आलमारी से आपका क्या सामान गायब हो जाये और बेटियाँ बुआ के सामान पर कब सप्रेम अधिकार जता लें, कहा नहीं जा सकता। बड़ी हो, बुआ हो, मौसी हो, चाचा हो, कहकर काम तो खूब लिये जाते हैं पर बात जब अधिकारों की होती है तो बच्चों से दाज करती हो, घर में आग लगा रही हो...जैसे जुमले तैयार रहते हैं। 

पुत्र मोह में मगन माताओं को बहुओं की कारस्तानी दिखती नहीं है..और सुरसा होने पर भी वह लक्ष्मी बनी रहती हैं। दरअसल, यह पैंतरा औरतें आजमाती हैं। इनका अधिकतर जीवन दूसरों की जिन्दगी में झाँकने में, ब्लाउज की ऊँचाई मापने में, अपने मायके की तारीफ करने में, अपने नाकारा और बदतमीज बच्चों की तारीफों और तीमारदारी में गुजरता है।  अपनी बेटियाँ भले ही हाफ पैंट पहनकर घूमें मगर ननदों ने दुप्पटा लिया या नहीं, इस पर रहता है। अपने घर की बेटी भले ही शादी के बाद अपने मायके में रहे, मगर दूसरों की बेटियाँ अब तक ससुराल क्यों नहीं गयीं, इसकी चिन्ता जरूर रहती है। अपनी तोंद भले ही निकली रहे मगर ननदों का वजन बढ़ा हुआ और रंग सांवला ही लगता है। अपने बच्चों को भले ही नूडल्स और घी, रिफाइंड खिलायेंगी मगर आपकी चम्मच से जरा सा भी घी निकला तो यही कहेंगी कि घी कितना खाती हो और इसके बाद प्रवचन शुरू होगा कि हम तो घी - तेल डालते ही नहीं है। अपना भाई भले ही निकम्मा और आवारा हो मगर अपनी ससुराल की हर लड़की के चरित्र पर इनकी नजर रहती है। ऐसे लोग बच्चों को आपसे दूर करते हैं और आपके खिलाफ बच्चों के मन में जहर भरती हैं और एक दिन ऐसा आता है कि आप खुद ही सबसे दूर हो जाते हैं। 

ऐसे बहुत से लक्षण हैं मगर बात अब समाधान की हो तो क्या किया जाये...ध्यान मत दीजिए...यह एक प्रकार के मानसिक रोग से ग्रस्त हैं तो किसी बच्चे की तरह इनसे व्यवहार होना चाहिए क्योंकि परिपक्वता क्या होती है, इनको नहीं पता। 

एक दूरी बनाकर चलिए मगर घर की किसी भी चीज पर अपना अधिकार मत छोड़िए। जरूरत पड़े तो जहर बुझे तानों का जवाब उनकी भाषा में देने में कोई आपत्ति नहीं। बहुत ज्यादा अच्छा या दयालु बनने की जरूरत नहीं है, हर एक विधर्मी दया का पात्र नहीं होता। रिश्तों के चक्कर में अपनी गरिमा मत खोइए...जरूरत पड़े तो अपने अभिभावकों के साथ भी आपको सख्ती से बात करनी होगी, आपको बुरा कहा जा रहा है तो परवाह न करते हुए दरवाजा बंद करिए, मनपसन्द संगीत सुनिए और अपना काम करिए। बच्चों से प्रेम कीजिए मोह नहीं और बदतमीजी का जवाब यह है कि उनको अपने पास न फटकनें दें। आर्थिक रूप से सक्षम होना सबसे ज्यादा जरूरी है। घर में तोहफे लाने पर अपना वेतन खर्च करने की जगह उसकी एफ डी करवा दीजिए, अपने नाम से। जन्मदिन पर भी तोहफे लाने की कोई जरूरत नहीं। जरूरत पड़े तो अपनी सफलता का जश्न मनाइए और अहसास दिलाइए कि आप कहाँ हैं और आपके संघर्ष क्या हैं। खुद को अच्छा साबित करने में वक्त गंवाने से अच्छा है कि काम पर ध्यान दिया जाए और यही एक रामबाण उपचार है।


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