लड़कियों....प्यार के नाम पर सब कुछ कुर्बान मत करो...प्यार के आगे भी जिन्दगी है

लड़कियाँ..बड़ी भावुक होती हैं लड़कियाँ..अगर कोई इनसे पूछे कि जिन्दगी में क्या चाहिए तो अधिकतर लड़कियाँ कह देंगी कि सिर्फ प्यार चाहिए...सुकून चाहिए...कोई समझे...कोई ऐसा चाहिए..। जब प्यार करती हैं तो आगे - पीछे नहीं देखतीं...भरोसा करती हैं..हद से ज्यादा...इतना ज्यादा विश्वास करती हैं कि उनको एक पल के लिए भी अपने प्यार के लिए सब कुछ छोड़ने में हिचक नहीं होती...और उनको क्या मिलता है..उनको मारकर टुकड़ों में काटकर कभी फ्रिजर में रखा जाता है, कभी जंगलों में फेंक दिया जाता है और कभी बहा दिया जाता है । श्रद्धा ने भी तो यही चाहा होगा.. और उसे मिला क्या....? क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों है कि लड़कियाँ सिर्फ प्यार के पीछे क्यों भागती हैं....? जन्म से ही उनका जीवन मृगतृष्णा सा रहता है..जहाँ पैदा होने के बाद से ही पराया बना दिया जाना...अपने ही परिवार में अवांछितों की तरह जीना..हर कदम पर भेदभाव किया जाना...हर कदम पर रोक - टोक लगाना, पाबंदी लगाना...आपके समाज में लड़कियों की परवरिश के लिए प्यार शब्द रहा ही कहाँ हैं ? वह इसी प्यार की तलाश में रहती हैं और जब प्यार के नाम पर छल करने वाले मिलते हैं तो लड़कियों की मासूमियत और मजबूरी का फायदा उठाते हैं । आज की दुनिया में लड़कियों के आर्थिक अधिकारों की बात तो होती है मगर उनकी मानसिक जरूरतों पर बात करने की जहमत कोई नहीं उठाता .....लेकिन...जब आपके बारे में कोई बात न करे तो आपको अपने लिए आवाज उठानी होगी..। लड़कियों खुद से प्यार करना सीखो...और अपनी जड़ों को किसी के लिए मत छोड़ो, प्यार से आगे खुद को रखना जरूरी है...। किसी से भी इतना प्यार मत करो कि उसके लिए खुद को इतना बदल दो कि अपनी सूरत भी पहचानी नहीं जा सके । किसी को भी इतना मत चाहो कि अपना घर, अपने अधिकार...सब कुछ छोड़कर चल दो...और जो तुम्हारा है..वह किसी और के हिस्से चला जाए..जो भविष्य तुमने देखा नहीं..उस भविष्य के लिए वर्तमान की जमीन छोड़ना प्रेम नहीं है...जब फैसला लेना मुश्किल होने लगे तो खुद को दूर करो...प्रेम से...आकर्षण से..जरूरत पड़े तो परिवार से...मगर खुद से दूरी मत बनाओ...अपने काम से दूरी मत बनाओ, अपने लक्ष्य से दूरी मत बनाओ क्योंकि प्रेम नहीं...तुम्हारे जीवन का उद्देश्य, तुम्हारा लक्ष्य..तुम्हारा व्यक्तित्व ही तुम्हारा वर्तमान भी बनाएंगे और भविष्य भी । एक दूसरे का सहारा बनो..अगर अपनी तरह किसी को टूटता देखो....झट से जाकर उसका हाथ कसकर पकड़ लो... । प्रेम इतनी बड़ी चीज भी नहीं है कि उसके बगैर जीवन जीया ही न जा सके...और प्रेम करना ही है तो सबसे पहले खुद से प्रेम करो...और खुद से प्रेम करने का मतलब अपने आत्मसम्मान की रक्षा करना होता है । हमें बचपन से ही यह सिखाया गया है कि खुद से प्रेम करना स्वार्थ है, खुदगर्जी है..मगर खुद से प्रेम करने का मतलब यह नहीं है कि दूसरों से प्रेम करना छोड़ दिया जाए बल्कि सत्य तो यह है कि जब हम अपनी इज्जत करना सीखते हैं तो हम दूसरों की इज्जत करना सीखते हैं, अपने प्रति गम्भीर होते हैं तो दूसरों के प्रति भी गम्भीर होते हैं । श्रद्धा ने विश्वास करने की कीमत चुकाई.........यह उसकी गलती नहीं थी..विश्वास करने वाला दोषी नहीं होता मगर विश्वास के लिए अपना सब कुछ छोड़कर चल देना..यह सही नहीं हुआ क्योंकि भावकुता में जड़ों से कटना, अधिकार छोड़ना...यह सही नहीं था...। क्या दूर रहकर प्यार नहीं निभाया जा सकता? जो प्यार इस बात पर टिकने की माँग करे कि उसके लिए सब कुछ छोड़ देना चाहिए...उस प्यार को ही छोड़ देना सबसे सही निर्णय है । जो प्यार आपको, आपके व्यक्तित्व को पूरी तरह बदल देना चाहे...वह और कुछ भी हो..प्यार हो ही नहीं सकता । आपकी पहली प्राथमिकता आप खुद हों, यह जरूरी है । यह समझना मुश्किल है कि आफताब जैसे लड़कों के दिमाग में इतना जहर कहाँ से आ रहा है । 72 हूरों को पाने ख्वाहिश में जल्लाद बनने वालों, जन्नत की हूरें भी वहशियों से प्यार नहीं करतीं बल्कि उसे ठोकर मारती हैं....प्यार पाने के लिए सबसे पहले एक अच्छा इन्सान बनना जरूरी है । अपनी सनक में...प्यार के नाम पर शिकार करने निकले शिकारियों ने खुद अपना ही शिकार कर डाला है...एक तुम्हारी वजह से न जाने कितने लड़कों के ब्रेकअप होंगे.. तुम जैसों के कारण तुम्हारा परिवार, तुम्हारे नाते - रिश्तेदार सब दुनिया भर की नफरत हमेशा के लिए सहेंगे...तुम खुद कैद में हो...जब यह सनक छूटेगी...तब तुमको पता चलेगा कि तुम कितने गहरे अन्धेरे में डूब चुके हो । यह जरूरी है कि अभिभावक अपने बच्चों को खासकर लड़कों पर भी ध्यान दें...उनको इनको इन्सान ही रहने दीजिए,,अपने स्टेटस, जाति, धर्म, मजहब की आरी से उनकी मासूमियत को मत मारिए...जो बच्चे इस तरह के नृशंस कांड कर रहे हैं, उनकी बुनियाद एक दिन में तो पड़ी नहीं होगी...आस - पास का माहौल देखा होगा उसने,,,वह क्या देख रहे हैं...इस पर आपकी नजर भी रहनी चाहिए । प्रेम ही नहीं, किसी भी सम्बन्ध में मर्यादा का होना जरूरी है...जब भी मर्यादा टूटी है, विध्वंस ही हुआ है । हमारी दिक्कत है कि हम मानवीय मूल्यों की बात करते हैं मगर सम्मान तो पैकेज वालों को ही मिलता है..तो आपने आदर्श ही गलत रखे तो परिणाम अच्छे कैसे निकलेंगे? हमेशा ही लड़कों को सिखाया जाता रहा है कि उनको जो पाना है, हर हाल में पाना है चाहे इसके लिए उनको किसी भी हद तक गिरना पड़े, आपने उनके लिए लड़कियों को ऑब्जेक्ट की तरह रखा, उनको बताया कि लड़कियाँ उनकी सम्पत्ति हैं और वह किसी भी तरह उनको ट्रीट कर सकते है...साम, दाम, दंड..भेद...अपहरण...लड़कियाँ आपके लिए शर्त हैं...जिनको जीतना जरूरी है...इस देश में बहुत जरूरी है कि लड़के और लड़कियों की काउंसिलिंग बचपन से एक इंसान की तरह की जाए । अपने घरों में देखिए कि आप अपने घर की औरतों से कैसा व्यवहार कर रहे हैं क्योंकि बच्चों के लिए सबसे बड़ा रोल मॉडल आप हैं...आपके घर का बच्चा आपकी ही छाय़ा बनने जा रहा है । अब बारी है दोस्तों की....जो काम माता - पिता नहीं कर सकते...वह काम दोस्त कर सकते हैं..मैं बार - बार कहती हूँ और फिर दोहरा रही हूँ कि इस देश को, समाज को, विश्व को कोई बचा सकता है तो वह किताबें हैं, संस्कृति हैं,,,,और देश का युवा समाज है...आपको उठकर खड़ा होना होगा कि आपका कोई दोस्त आफताब न बने...यह आप ही हैं जो अपने भटके हुए दोस्त को सही रास्ते पर ला सकते हैं...सही समय पर उसके मन को पढ़ सकते हैं, उसका अकेलापन दूर कर सकते हैं...उसकी सृजनात्मक गतिविधियों को जगा सकते हैं...उसे मनुष्य बना सकते हैं..यह आपको करना ही होगा क्योंकि आने वाला कल आपका है, आने वाली दुनिया आपकी है..समूह बनाइए...मोहल्ले में...क्लब में...किसी भी तरीके से सृजनात्मक गतिविधियों को आगे बढ़ाइए...मौका मिले तो मिलकर किसी विशेषज्ञ को, डॉक्टर को, काउंसिलर को साथ लेकर चर्चा करिए...करवाइए...अगर कोई दीवार है तो उसे गिराइए ....उसे यथार्थ के धरातल पर लाकर सही लक्ष्य दीजिए और यह तब होगा कि जब आप खुद सही राह पर चलेंगे तो शुरुआत खुद से आज से और अभी से कर दीजिए ।

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