बात रंग पर नहीं, अश्लीलता पर कीजिए...खुद को देखिए, सुधरिए या रुदन बंद कीजिए

बात रंग से अधिक अश्लीलता पर होनी चाहिए...बिकनी हिन्दी सिनेमा में कोई नयी बात नहीं है...दीपिका ने पहली बार नहीं पहनी...मैंने गाना थोड़ा सुना, अच्छा नहीं है, गीत और संगीत, दोनों खिचड़ी है...नरगिस से लेकर शर्मिला टैगोर और भी बहुतों ने पहनी है, मेरा नाम जोकर में सिमी ग्रेवाल को याद कीजिए एक समय था जब दीपिका अच्छी लग रही थीं, उन्होंने पीकू, छपाक, चेन्नई एक्सप्रेस जैसी, फिल्म भी की है, शाहरुख खुद राजू बन गया जेंटलमैन वीर- जारा, स्वदेश , चक दे इंडिया जैसी अच्छी फ़िल्में कर चुके हैं पठान में दोनों जैसे थके और खुद को, स्टारडम को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, समय आ गया है कि दोनों को अपनी उम्र के अनुसार अपने किरदार चुनने चाहिए,स्मिता पाटिल तब्बू, काजोल, विद्या बालन और कंगना ये कर चुके हैं शाहरुख को राजकुमार राव, फारुख शेख और संजीव कुमार से सीखना चाहिए आप हमेशा युवा नहीं रह सकते....वैष्णो देवी जाना सिर्फ एक स्टंट था और ये विवाद भी स्टंट है कहने का मतलब यह....फिल्म को फिल्म की तरह देखिए....पठान....अटेंशन की हकदार नहीं है स्टंट्स से कॅरियर न तो बचता है और न चल पाता है....शाहरुख में मुझे राजेश खन्ना दिखने लगे हैं...नहीं सुधरे तो उनका अंत भी वैसा ही होगा, मेरे लिए बिकनी और बिकनी का रंग कोई मुद्दा ही नहीं है, फिल्मांकन और संगीत का गिरता स्तर चिंता का विषय है, फिल्म पत्रकारों की स्टोरी का घटिया और गिरता स्तर, कैमरे का बदन दिखाऊ एंगल चिंता का विषय है.... आप उर्फी, राखी, सनी को पत्ता दे ही क्यों रहे हैं, कई बार खबर पढ़कर उल्टी करने को जी करता है, लोग अपनी कलम और कैमरे से ही आँखें सेंक रहे होते हैं....एक साथ विद्यापति, पद्माकर का श्रंगार रस और रति रस का आनंद लेते दिखते हैं आप एक बार अपनी कलम को सही एंगल दीजिए, सारे एंगल सुधर जायेंगे क्योंकि ये जो होता है, पब्लिक के नाम पर ही होता है ये कौन लोग हैं जिनके कारण सनी लियोनी और उर्फी ट्रेंड में अव्वल रहती हैं आईना देखिए और खुद को देखिए , सुधर जाइए ‐----- और नहीं कर सकते और दुर्दशा पर रुदन बंद करिए हैरत की बात है कि औरतों के कपड़ों को लेकर औरतों को दिक्कत है भी नहीं, वो बात सलीके से रख रही हैं मगर आपको क्या दिक्कत है कि धर्म, जाति, संस्कृति के झंडे लेकर फुटेज खाने को बेताब हैं, ये जो दीपिका के समर्थक भी हैं, वो क्या आपने घर की बहू- बेटियों को बगैर किसी शर्त के बाहर निकलने देते होंगे ...तो फिर घूंघट की शान में कसीदे कौन पढ़ता है.... बहनों, इनको अपना हितैषी समझने की भूल न करें हमने कभी कहा कि आप नंगे दिखेंगे तो जिंदा जला देंगे, इधर- उधर हर जगह को शौचालय बनाया तो तेजाब डाल देंगे, तो ये हमारे मामले हैं, संभाल लेंगी, संस्कृति और देश भी आपसे बेहतर देख लेंगी, आप अपना चरित्र सम्भाल लीजिए...वही काफी है ये बहुत जरूरी है कि स्त्रियां अपने मुद्दों पर हर किसी को राजनीति न करने दें आप अपनी पान की पीक, जाति, धर्म के मठ सम्भालने पर ध्यान दीजिये ...बस आप हमारे अधिकारों पर, संपत्ति के अधिकारों पर, चयन के अधिकारों पर कुंडली मारकर बैठना बंद कर दीजिए, इतना ही काफी है संस्कृति ,परिधान, हमारा हर मुद्दा, साड़ी, बिकनी खुद संभाल लेंगी हम स्त्रियां इतनी तो सक्षम हैं #wecanhandle

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