सिबलिंग राइवलरी परिवारों का सच है, बेटी की जगह नहीं, बहू को बहू बनाकर सम्मान दीजिए

परिवार को लेकर हमारे देश में एक यूटोपिया है...हम भारतीय ऐसी कल्पना में जीते हैं जिसमें परिवार का मतलब सारी समस्याओं का समाधान है मगर ऐसा होता नहीं है । परिवार में प्रेम हो सकता है मगर परिवार में लोकतांत्रिक परिवेश न हो, किसी एक व्यक्ति की निरंकुश सत्ता हो और वह उस सत्ता का उपयोग अपने छोटे भाई - बहनों को दबाने के लिए करे...तो परिवार का ढांचा सलामत रहे..यह नहीं हो सकता । सिबलिंग राइवलरी हर परिवार का सच है मगर दिक्कत यह है कि हम न तो इसे लेकर सोचते हैं और न ही इस पर बात करना चाहते हैं । परिवारों में सम्मान का अनुपात शक्ति, सामर्थ्य और पैसे से तय होता है..बेटा हो या बेटी हो, खुद माता - पिता भी अपने बच्चों को इसी आधार पर प्रेम देते हैं । सम्पन्नता से ही आचरण तय होता है और यही बात ईर्ष्या का कारण बनती है । 'समरथ को नहीं दोष गोसाई' की उक्ति भारतीय संयुक्त परिवारों का सच है । अन्यायी अगर समर्थ हो तो बहिष्कार प्रताड़ित का होता है, दोषी का नहीं । खासतौर से मामला लड़कियों का हो तो उनकी भावुकता कब उनकी प्रताड़ना का कारण बन जाती है और संवेदना का लाभ उठाकर कब उनके साथ माइंड गेम खेला जाने लगता है, उनको पता भी नहीं चलता है। 'मायके का आसरा बना रहे' और 'आखिर तो इस घर से चले जाना है' जैसे शब्दों से खुद को बहलाते रहना खुद को छलना ही होता है । आप रिश्ते निभाती रह जाती हैं और कब अपने ही घर में रहने वालों की नजर में आप चुभने लगती हैं..आप खुद ही नहीं जानतीं । आखिर क्यों जब हम घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज उठाते हैं तो इसका दायरा लड़की की ससुराल तक सीमित रह जाता है जबकि हम सब जानते हैं कि लड़कियों के साथ भेदभाव बचपन से होता आ रहा है, बेटे की चाह में उनकी हत्या गर्भ में ही सदियों से की जाती रही है, प्रेम करने के अपराध में उनकी हत्या उनके उसी घर में हो रही होती है, जहाँ वे जन्मी हैं और वहीं पिता मारता है जो उसका जन्मदाता है । उसकी हत्या वही हाथ करते हैं जिनके हाथ में राखी उसने उसी उम्मीद में बांधी होती है कि वह उसकी रक्षा करेगा ..। आखिर यह कैसी परवरिश हमारे परिवारों में दी जाती है जहाँ बहनों को उनके भाई हर तरह से प्रताड़ित करते हैं, वाचिक, शारीरिक एवं मानसिक हिंसा का बहनें शिकार होती हैं और एक शब्द भी नहीं कहतीं । हमारे कानून में पत्नी पति के खिलाफ शिकायत कर सकती है मगर बहनों की सुरक्षा और उनके अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए किसी भी तरह का सटीक कानून नहीं है, बहनों की शिक्षा भाई की वजह से छुड़वा दी जाती है, उनकी महत्वाकांक्षाओं को रौंदकर भाई को अफसर बनाया जाता है...मगर तब भी अपने लिए सोचना उनको पाप लगता है । संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि हर साल दुनिया में 5 हजार लड़कियां ऑनर किलिंग का शिकार होती हैं । रिपोर्ट में बताया गया था कि इन 5 हजार में से एक हजार लड़कियां भारतीय होती हैं । यानी, ऑनर किलिंग का शिकार होने वाली हर 5 में से 1 लड़की भारत की होती है । बहन का दुप्पटा इधर से उधर न हो...वह जब भी चले, सिर झुकाकर चले, किसी अजनबी से बात न करे, वही करे जो परिवार चाहता है । वह देर से घर आए तो उससे हजार सवाल, घर का सारा काम अपनी पढ़ाई छोड़कर उसे ही करना है, सिर्फ अपना ही नहीं बल्कि भाई के निजी काम भी उसे ही करने हैं...आखिर क्यों ? वह क्या पढ़ेगी, वह क्या पहनेगी, वह किससे शादी करेगी से लेकर हर छोटी बात पर फैसले का अधिकार उसे नहीं, क्यों ? आखिर जिस घर में उसने जन्म लिया है, वह घर उसका क्यों नहीं है...और क्यों किसी और को उसके हिस्से का कमरा, उसके हिस्से का सम्मान दिया जाना चाहिए...हर बात पर घर की शांति के लिए उसे समझौता करना सिखाइए और जब विरोध करे तो कहिए कि वह घर में आग लगा रही है । बहनों के मामले में होता यह है कि वह विक्टिम होती है मगर उसे कल्परिट बना दिया जाता है...जब माता - पिता ससुराल में गलत का विरोध करना सिखा रहे होते हैं तो यही शिक्षा वह अपनी बेटियों को क्यों नहीं देते और क्यों नहीं सिखाते कि भाई अगर अपमानित या प्रताड़ित करे, तो उसी समय खींचकर एक तमाचा जड़ने के लिए बहन को पूछने की जरूरत नहीं है...सच यह है कि कोई भी किसी की सुरक्षा करे...इसके लिए जरूरी है कि उसके मन में प्रेम हो, समानता का भाव हो मगर भाई बहनों के मामले में यह भावना काम नहीं करती । वहाँ असुरक्षा होती है और कहीं न कहीं उसे आश्रित मानने की भावना भी काम करती है । किसी को आश्रित मानना मतलब उसे खारिज कर देना, अहसान जताना..दुःखद परन्तु सत्य है कि भाई - भाभी अपनी बहनों को घर में या तो टिकने नहीं देना चाहते या उसे हाशिए पर रखते हैं । मानसिक तौर पर उसे इस कदर प्रताड़ित किया जाता है कि वह खुद घर छोड़ देती है या फिर विवाह या नौकरी कर के किसी भी तरह उस घर को छोड़ देना चाहती है...और जब वह ऐसा करती है तो लोग आराम से कह देते हैं कि किया तो उसने ही है...कोई भी यह जानने की कोशिश नहीं करता है कि ऐसा उसके साथ क्या हुआ या किस तरह की परिस्थितियाँ बना दी गयीं कि ऐसा कदम उठाना पड़ा । यह कॉरपोरेट में अनचाहे कर्मचारियों के साथ होता है और घरों में अनचाहे सदस्यों के साथ होता है जिसमें से घर का छोटा भाई या बहन सबसे अधिक प्रताड़ित होते हैं । समाज, परिवार, इज्जत जैसे खोखले शब्दों के भंवरजाल में फँसकर या तो वे बड़े भाइयों के गुलाम बने रहते हैं या फिर एक दिन खामोश रह जाते हैं. अवसाद में चले जाते हैं । सब कहते हैं कि ऐसा उसके साथ क्या हुआ..लोग सहानुभूति जताते हैं मगर दोषी व्यक्ति की समाज में पूजा भी होती है और उसे पूरा आदर मिलता है । शिकायत करने वाले या आवाज उठाने वाले को बहिष्कृत किया जाता है, परिवार से, समाज से, उसे एक कोने में धकेल दिया जाता है और इस पर भी आप कहते हैं कि परिवार सुरक्षा और शरण स्थली है तो इससे बड़ा झूठ कोई नहीं....परिवार ने सुरक्षा के खोखले आवरण का सहारा लेकर हमेशा से ही स्त्रियों...खासकर बेटियों और बहनों को प्रताड़ित किया है, प्रताड़ित कर रहा है । हमारे साथ दिक्कत यह है कि हम संवेदनशील पुरुषों अथवा संवेदनशील स्त्री को ही कमजोर समझकर उसे उपेक्षित करते हैं..आज बहुत से पुरुष और भाई भी...बहनों को आगे ले जाना चाहते हैं मगर परिवार में या तो उनकी चलती नहीं या वह इतने सक्षम नहीं होते कि वह अपनी बात मजबूती से कह सकें । यही बात बहनों के बारे में कही जा सकती है मगर जरूरी है कि जो सम्बन्ध और जो लोग सम्बन्धों को लोकतांत्रिक, ईमानदार और स्वच्छ परिवेश दें..उनको सम्मान दिया जाए और उनको सेलिब्रेट किया जाए..कई बार सिबलिंग राइवलरी जनित ईर्ष्या बहनों के बीच भी होती है और वह इतनी ज्यादा होती है कि वह या तो उपहास बनती है या फिर प्रतिशोध...खासकर यह उन लड़कियों को झेलना पड़ता है जो अपने भाई - बहनों की तुलना में अधिक शिक्षित और आत्मनिर्भर है...ऐसी परिस्थिति में उसे पीछे धकेलने वाले ऐसे ही लोग होते हैं...जो उसे हतोत्साहित करने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाते हैं । बात अपेक्षाओं की भी है जो काल्पनिक और अव्यावहारिक भी है..घर में कोई नयी बहू आए तो अचानक उसे तारणहार मानकर सब कुछ सौंप देना वह उसकी ही नहीं आपकी भी मुश्किलें बढ़ाता है । बहू घर की सदस्य है, उसे उसके हिस्से का सम्मान अवश्य मिलना चाहिए मगर यह भी सुनिश्चचित कीजिए कि यह देने के लिए आप घर के किसी और सदस्य के साथ अन्याय न कर रहे हैं क्योंकि अगर ऐसा है तो पारिवारिक एकता रेत की तरह होगी जो मुट्ठी खुलते ही फिसल जाएगी । आखिर क्यों किसी बहू को प्रेम करने के लिए आपको उसे बेटी ही बनाना है, आप उसे बहू बनाकर और बहू मानकर ही प्रेम क्यों नहीं कर सकते ? विवाह परिवार को एक इकाई में बदल देता है..घर के अन्दर घर..रिश्तों के अन्दर रिश्ते, अपने फायदे, अपने स्वार्थ होते हैं । एक पौधा उखाड़कर आपने दूसरा पौधा लगा दिया, तब भी आप दूसरे पौधे का मन नहीं बदल सकते..दरअसल यह उम्मीद करनी ही नहीं चाहिए...जिस तरह आप बहू से उम्मीद नहीं कर सकते है कि वह 25 साल पुराना मायके भुला दे, उसी तरह आपको बहनों से भी यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि भाभी के घर में कदम रखते ही वह अपना सब कुछ उन पर न्योछावर कर दे और खुद को अपने ही घर में आश्रित मानने लगे । चाहे प्यार हो या सम्पत्ति हो....सब पर पहला अधिकार घर की बहन और बेटियों का ही होना चाहिए । संयुक्त परिवार की अवधारणा को तोड़ने का काम बेटे और बहू ही करते आ रहे हैं मगर पराया बेटियों को कहा गया...जो मन से आपके साथ नहीं है...क्या वही सबसे अधिक पराया नहीं है ?

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