एक दीया बुझी हुई पारिवारिक व्यवस्था के नाम

समय के साथ हर चीज बदलती है, रिश्तों का रूप बदलता है मगर जारी रहता है उनमें टकराव। इस बार दीपावली विशेष है क्योंकि स्वास्थ्यगत असुविधाओं से जूझते हुए आज की शाम मुझे ईश्वर का वरदान ही लग रही है। कभी सोचा नहीं था मगर ऐसी परिस्थितियां बनीं...आज का दिन उन पर बात करने का नहीं है मगर रुककर सोचने का जरूर है। आमतौर पर स्त्रियों के बारे में लिखती रही हूँ, उनके हक की बात करती आ रही हूँ...मगर यह वह समय है जब समाज और परिवार को ही नहीं, स्वयं स्वावलम्बी, सुशिक्षित, समझदार स्त्री को रुककर सोचने की जरूरत है जिसे सामंजस्य कायरता लगता है। फेसबुक से लेकर यू ट्यूब व इंस्टाग्राम तक ऐसे रील दिख जाते हैं जहां एक स्त्री या तो ससुराल या पति से प्रताड़ित है...या एकता कपूर के धारावाहिकों की तरह षडयंत्र रचती है और अक्सर यह सब हास्य में लपेटकर दिया जाने वाला वह जहर है जिसमें अबोध बच्चों को शामिल किया जाता रहा है। आज की लड़की वह स्वतंत्र लड़की है जिसे अपने माता- पिता, भाई-बहन अपनी जिम्मेदारी लगते हैं, उनके लिए सॉफ्ट कॉर्नर है, वह कृतज्ञ है मगर जिस घर में वह गयी है। जिस व्यक्ति का हाथ पकड़कर आई है, जहां उसे पूरी जिन्दगी गुजारनी है और यह सब उसकी इच्छा से, धूमधाम से होता रहा है, वह उसे बोझ लगते हैं। गहरे मेकअप और महंगी साड़ियों में सजी ये वधुएं उसे अपनाने को तैयार नहीं हैं जिनके कारण उसके पति का अस्तित्व है। भाभी और ननद से जुड़े रील देखती हैं और तब लगता है कि हमारी परिवार व्यवस्था को स्वयं स्त्रियां अब अपने स्वार्थ के लिए गहरी खाई में फेंक रही हैं। जो महिला अपने भाई-बहनों का किया गिनाती रहती है, उसे ही अपनी ननद और देवर जहर लगते हैं। रोजमर्रा के छोटे - मोटे काम वह इनसे ही करवाती है मगर अपने बच्चों के लिए उनको ही खलनायक बनाकर रखती हैं। यह दोहरा चरित्र कहां ले जाकर छोड़ेगा, ईश्वर जानें। जिन महिलाओं को अपने भाइयों का बंटवारा बर्दाश्त नहीं होता, वही महिलाएं अपने पति को उसके भाई-बहनों से अलग करती हैं, उनके अधिकार खाती हैं और समाज की नजर में कुशल गृहिणी कहलाती हैं। अपने भाई-बहन फर्ज हैं और जिस घर में वह धूमधाम से लाई गयी, जिसकी वजह से लाई गयी, उसके भाई-बहन बोझ हैं.....उनका उसी घर में कोई अधिकार नहीं है, जिस घर में वह पले-बढ़े, जिम्मेदारियां निभाते रहे। यही महिलाएं जब वृद्धा होने लगती हैं तो उनको संयुक्त परिवार याद आने लगता है और मजे की बात यह है कि जो व्यक्ति अपने भाई-बहनों को कभी नहीं भूला, वह अपनी शादी के बाद उनको सबको त्याज्य मान लेता है। हाल ही में केबीसी में एक बच्चा आया जिसकी बदतमीजी के कारण उसे काफी ट्रोल किया गया मगर कसूर क्या उस बच्चे का है? यह बात जेंटल या एकल परिवार की भी नहीं है, यह बात मूल्यों की है जो महिलाएं नहीं निभा पा रही हैं। मैं मानती हूँ कि ससुराल में बुरा बर्ताव होता है, पर खुद से भी कभी पूछिए कि क्या आपने परिवार को अपनाने की कोशिश की या रिश्तों को अपने हिसाब से इस्तेमाल करती आ रही हैं। जो आपकी मर्जी से चले, वह आपके मनचाहे हो गये और आप जिनको मैन्यूपुलेट नहीं कर सकीं, वह आपकी नजर में ऐसे खटकने लगे कि आप अपनी हिंसक ईर्ष्या में उनको खत्म करने तक आ गयीं। आज बबूल का जो वृक्ष आपने लगाया है, उसके कड़वे फल आपकी संतानों के हिस्से में भी आएंगे। सही है, बेटियां ताउम्र बेटियां रहती हैं और भाई -बहन एक्सपायरी डेट के साथ आते हैं। सोशल मीडिया पर हर व्यक्ति बाउंड्री बनाने की सलाह देता फिर रहा है। हम वह पीढ़ी हैं जो बॉस से गालियां खाने को ऐडजस्टमेंट मानती है मगर उसके घर में किसी ने कुछ कहा तो सह नहीं पाती। मैं अन्याय सहने का समर्थन नहीं करती मगर एक बार रुककर सोचिए कि हर युद्ध के बाद कुएं ही बनाने हैं तो घर के आंगन का कुआं क्या बुरा है। विवाह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, जिस तरह अच्छा -बुरा साथ लेकर आप कम्पनी सम्भाल लेती हैं, वहां ताने नहीं मारतीं, उसी प्रकार आपमें अपना घर सम्भाल लेने की क्षमता होनी चाहिए। जिस तरह आपके कर्मचारी सारे काम नहीं कर सकते, आपको नहीं समझ सकते, वही स्थिति घर की भी है। एक बात तय है कि हमारे अन्दर चाहे जितनी भी क्षमता हो, वह क्षमता हमेशा नहीं रहेगी, एक दिन सबको लाचार होना है, सब के सब थकेंगे और अब लगता है कि प्रकृति ने बहुत सोच-समझकर यह व्यवस्था बनाई है। अपने अहंकार में किसी की हाय मत लीजिए....अपने बच्चों को उस परिवार से जोड़िए जो उसे टूटने न दे,उसे बताइए कि हारना, झुकना, माफी मांगना ये उसे कमजोर नहीं बनाते बल्कि भविष्य के लिए तैयार करते हैं। उसे बताइये कि जीवन युद्ध का मैदान नहीं है, वह कोई दौड़ भी नहीं है जहां हर बार जीतना जरूरी हो, हम हमेशा नहीं जीत सकते। बच्चों को वह डोर थमा दीजिए जो गलतफहमी में टूटी है। सामंजस्य हर जगह जरूरी है मगर आजादी के नाम पर अधिकारों खेल इतना अंधा न हो कि अपनी जीत भी आपको हार लगे। यथार्थ यह है कि स्त्री हो या पुरुष हो, स्त्री का मायका और पुरुष की ससुराल उस खाली जगह को नहीं भर सकते है, जो ईश्वर ने उनके लिए नहीं बनायी। इस बार एक दीया उन बुझे हुए रिश्तों के नाम जिनको हमने अहंकार को स्वार्थ की हवा से खुद बुझा दिया।

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