रिश्तों के बीच पुल बनिए, दीवार बनना सही नहीं
सोशल मीडिया पर जिस तरह के कंटेंट महिलाएं बना रही हैं और अपने पारिवारिक झगड़ों का उपयोग टीआरपी पाने और फॉलोवर बढ़ाने के लिए कर रही हैं, उसके दूरगामी परिणाम कुछ अच्छे नहीं है। हैरत की बात यह है कि इसमें लड़के भी साथ दे रहे हैं। अधिकतर कंटेंट आजादी के नाम पर सास-बहू की आलोचना के लिए या बहू के अधिकारों की रक्षा के नाम पर उनकी गलतियों को जस्टीफाई करते हुए बनाए जाते हैं। मां का घर है मायका मगर ससुराल आपके सास-ससुर के नाम पर है यानी शाब्दिक दृष्टि से भी यह घर आपके पति से अधिक उनके माता -पिता का है। भारतीय परिवारों की समस्या यह है कि अपने मायके में एडजस्ट करने वाली लड़कियां और माता- पिता की प्रतिष्ठा के लिए समझौते करने वाली लड़कियां भी ससुराल में पहले दिन से ही अपनी एक अलग दुनिया बनाने लगती हैं जिसमें वह, उनके पति व बच्चे होते हैं, और कोई नहीं। वह यह मान लेती हैं कि वह इस घर में आ गयी हैं तो अब पति पर, पति के जीवन पर, पति की इच्छाओं पर तो उनका अधिकार है, बस पति के रिश्तेदार उनके कुछ नहीं लगते। वहीं माता-पिता अब भी उसी पुरानी दुनिया में जी रहे हैं, उनको अब भी अब भी अपना बेटा 24 घंटे अपने पास चाहिए। जिन औरतों को रिश्तों के बीच पुल बनना चाहिए, वह अब दीवार बन रही हैं तो कलह स्वाभाविक है। कामकाजी लोगों को उनकी ही भाषा में समझाया जाना चाहिए...क्या जब आप नये दफ्तर से जुड़ते हैं तो क्या पहले ही दिन बॉस बन जाते हैं या अपनी मेहनत से, अपनी लगन से बरसों तक मेहनत करने के बाद आपको वह जगह मिलती है? क्या आप जहां काम करते हैं, उस कम्पनी के मालिक होने का दावा कर सकते हैं कि दो दिन में कम्पनी आपके नाम कर दी जाए? अब घर का मामला देखिए...जिस गृहस्थी को पाने के लिए आप मरी जा रही हैं, पहली बात, वह गृहस्थी आपने नहीं बनायी, वह आपके सास-ससुर की जीवन भर की तपस्या का फल है। जिस तरह एक कर्मचारी की जिम्मेदारी और अधिकारों को धीरे - धीरे बढ़ाया जाता है, वैसे ही विश्वास होने पर सास-ससुर खुद आपको आगे बढ़ाते हैं। आपको जो सफल, संस्कारी पति मिला है, वह उनकी परवरिश का नतीजा है। उसे जो सहयोग मिला है, वह उसके भाई-बहनों व परिवार के कारण है और इसे बनाने में आपकी कोई भूमिका नहीं है। जिस तरह आपकी कम्पनी में आपके सीनियर्स की भूमिका है और आपकी इच्छा मात्र से उनको नहीं हटाया जा सकता, आपके बॉस आपकी खुशी के लिए उनको हाशिए पर नहीं डाल सकते। ठीक उसी प्रकार परिवार में आपकी इच्छा मात्र से आपके पति अपने माता-पिता,भाई-बहन व रिश्तेदारों को सिर्फ इसलिए नहीं हटा सकते कि आपको यह पसंद नहीं हैं। समस्या यह है कि लड़कियां गृहस्थी का हिस्सा नहीं बनना चाहतीं मगर उनको दूसरों की बनाई गृहस्थी को नोंचकर अपनी दुनिया बनानी है। तुर्रा यह है कि उनको इस पर भी ससुराल से प्यार चाहिए...नहीं मिलेगा बहिन।
हमारे घरों में जब भी कोई नववधू आती है, तो उसके लिए सबसे अच्छा कमरा देवर या ननद ही खाली करते हैं क्योंकि नयी बहू को कष्ट नहीं होना चाहिए मगर बहू को इस बात से ऐतराज है कि उसके आने के बाद भी पति अपनी मां की देखभाल क्यों कर रहा है, पापा के चश्मे, भाई की पढ़ाई और बहन की नौकरी की चिंता उसे क्यों करनी है, आपकी सोच पर तरस ही खाया जा सकता है बहन। सच तो यह है कि कोई बहन अपने भाई का घर नहीं तोड़ती, कई लड़कियां तो कलह से बचने के लिए अपने मायके तक जाना छोड़ देती हैं। और क्या चाहिए आपको....अगर कोई देवर या ननद साथ रहता है तो उसे अपने घर में अजनबी की तरह रहें....अहसान मानें कि उनको उनके ही घर में भाई-भाभी रहने दे रहे हैं। सोशल मीडिया पर बाकायदा रील्स चलती है कि रिश्ते बनाए रखने के लिए भौजाइयों को थैंक यू बोला जाए। तो अब यह बताइए कि बात-बात पर जेठ, जेठानी, सास-ससुर, देवर व ननद को छोटी - छोटी बातों के लिए जलील करने वाली बहुओं व भौजाइयों की इज्जत कैसे व कहां तक की जानी चाहिए? कई बहुएं तो अपनी जिम्मेदारी अपने पति व बच्चों तक समझती हैं, काम उनके लिए करती हैं....पति के कारण सास-ससुर एक्सटेंशन मोड में हैं...देवर या ननद की तो गिनती ही नहीं है। कई औरतें तो अपने तानों से ही देवर और ननद की आत्मा और अधिकारों को खत्म कर देती हैं। ननद से इनको घर के काम में सहयोग की उम्मीद होती है और शिकायत ननदों की ही अपने मायके में करनी होती हैं। इनके घर में पैर रखते ही आठवीं में पढ़ने वाली ननद को युवा और पराया मान लिया जाता है। स्नातक में पढ़ते हुए लड़के देखे जाने लगते हैं क्योंकि घर का बोझ इनके पति पर है, सब उनकी कमाई खा रहे हैं। मैडम को कोई बताए कि वह जिसके भरोसे इस घर में हैं, उसके और भी रिश्ते हैं दुनिया में। क्या यह स्वार्थपरता नहीं है। घर में कोई आयोजन हो तो मायके के लोग पहले बुलाए जाएंगे और पति के भाई-बहन घर में रहते हुए ही कोने में रखे जाएंगे और उनके सारे काम अहसान जताते हुए होंगे। उस पर सारी दुनिया के सामने आपके चेहरे पलट जाएंगे। मुझे लगता है कि यह सही समय है कि भाई-भौजाइयों से बचाने के लिए देवर-ननद के पक्ष में कानून बनाए जाए। आज बड़ी तेजी से वृद्धाश्रम बढ़ रहे हैं, लाचार होते माता-पिता को घर से निकालने के लिए बच्चों को लानतें भेजी जा रही हैं मगर रुककर सोचिए इन बच्चों ने यह सीखा किससे है? कहीं ऐसा तो नहीं है आज के माता-पिता जब खुद युवा थे तो हर प्रकार की शक्ति इनके पास थी तो क्या उन्होंने यही बर्ताव अपने माता -पिता के साथ नहीं किया होगा । बहुएं अपने पति को लेकर ससुराल को कोसती हुईं अलग होती हैं, अपने पति को अपनों से दूर करती हैं, बच्चों को दादा-दादी, बुआ - चाचा से दूर करती हैं, जो मौन आर्तनाद इन टूटे कलेजों से निकलता है, जो हूक निकलती है, जिस तरह वह तड़पकर जी रहे होते हैं और अंतिम सांस तक अपनी संतानों को आपके कारण नहीं देख पाते, ये हूक ईश्वर तक जाती है, कर्म लौटते हैं और जो खेल आपने कल खेला था, आज वही खेल आपके साथ खेला जा रहा है तो हैरत कैसी? बच्चों ने जो किया, बुरा किया मगर वृद्ध -वृद्धाओं से भी पूछा जाना चाहिए कि अपने समय में इन्होंने अपने बुजुर्गों के साथ कैसा बर्ताव किया। अधिकतर सफल औरतें अपने माता-पिता को अपनी कमाई का अंश देना चाहती हैं जिससे उनके माता-पिता को हाथ न पसारना पड़े। वह चाहती हैं कि उनके भाई की कमाई का हिस्सा उनकी भाभी की जगह माता-पिता को मिले। अच्छी बात है मगर तब आपको गुस्सा क्यों आता है जब आपके पति अपने माता-पिता को अपनी कमाई सौंपते हैं और अपने भाई-बहनों को तोहफे देते हैं।
मेरी समझ में तो होना चाहिए कि लड़का हो या लड़की, यह सुनिश्चित करना उनकी जिम्मेदारी है कि उनके रहते माता-पिता व जब तक भाई-बहन आर्थिक रूप से उन पर आश्रित हैं, उनको हाथ पसारना नहीं पड़े। एक सीमा के बाद भाई -बहन को भी बहुत अधिक जरूरत पड़ने पर ही बड़े भाई-बहनों की मदद लेनी चाहिए मगर माता-पिता? अपनी कमाई का दस प्रतिशत हिस्सा यानी पांच - पांच प्रतिशत अपने माता-पिता को दीजिए जिससे उनको आपकी पत्नी से नहीं मांगना पड़े। इसके बाद जरूरी है तो 10 प्रतिशत, 5-5 प्रतिशत के अनुपात में भाई-बहनों को दीजिए। जो बहन व भाई कमाते हैं, अपनी कमाई का दस प्रतिशत घर में दें। 5 प्रतिशत माता-पिता को व 5 प्रतिशत अपने घर के बच्चों को दें। छोटे- छोटे खर्च उठाएं। बहू परिवार को अपना समझे, सास-ससुर से ईर्ष्या मत कीजिए और न ही प्रतियोगिता कीजिए क्योंकि वह आपके घर में जाकर नहीं रह रहीं हैं, आपको इस घर का भविष्य बनाकर लाई हैं, कल आप ही रहेंगी...। अगर आप अपने पति-बच्चों व परिवार के बीच पुल बनेंगी तो यकीन मानिए कल को ये लोग आपके पीछे चट्टान की तरह खड़े रहेंगे। जो व्यवहार आप अपने लिए अपने लिए चाहती हैं, वही व्यवहार अपनी ननदों के साथ कीजिए। हो सकता है कि आप जिन चीजों को लेकर परेशान हों, वह परेशानी ये लोग दूर दें।

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