संदेश

अक्टूबर, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रिश्तों के बीच पुल बनिए, दीवार बनना सही नहीं

चित्र
सोशल मीडिया पर जिस तरह के कंटेंट महिलाएं बना रही हैं और अपने पारिवारिक झगड़ों का उपयोग टीआरपी पाने और फॉलोवर बढ़ाने के लिए कर रही हैं, उसके दूरगामी परिणाम कुछ अच्छे नहीं है। हैरत की बात यह है कि इसमें लड़के भी साथ दे रहे हैं। अधिकतर कंटेंट आजादी के नाम पर सास-बहू की आलोचना के लिए या बहू के अधिकारों की रक्षा के नाम पर उनकी गलतियों को जस्टीफाई करते हुए बनाए जाते हैं। मां का घर है मायका मगर ससुराल आपके सास-ससुर के नाम पर है यानी शाब्दिक दृष्टि से भी यह घर आपके पति से अधिक उनके माता -पिता का है। भारतीय परिवारों की समस्या यह है कि अपने मायके में एडजस्ट करने वाली लड़कियां और माता- पिता की प्रतिष्ठा के लिए समझौते करने वाली लड़कियां भी ससुराल में पहले दिन से ही अपनी एक अलग दुनिया बनाने लगती हैं जिसमें वह, उनके पति व बच्चे होते हैं, और कोई नहीं। वह यह मान लेती हैं कि वह इस घर में आ गयी हैं तो अब पति पर, पति के जीवन पर, पति की इच्छाओं पर तो उनका अधिकार है, बस पति के रिश्तेदार उनके कुछ नहीं लगते। वहीं माता-पिता अब भी उसी पुरानी दुनिया में जी रहे हैं, उनको अब भी अब भी अपना बेटा 24 घंटे अपने पा...

डियर युवाओं, परिवार से अच्छा सहयात्री कोई नहीं

चित्र
मन में विचार आता है कि आज के दौर में स्त्री होने का क्या मतलब है....स्त्री एवं पुरुष के लिए परिवार की परिभाषा कैसे इतनी संकीर्ण हो गयी। बात जब छठ की है तो छठ तो स्वयं ही एक प्रकार से भाई-बहन का पर्व है क्योंकि छठी मइया तो खुद ही सूर्यदेव की बहन हैं...भाई दूज में यम और यमुना भाई - बहन हैं और दीपावली में नरकासुर के वध के बाद जो सुभद्रा कृष्ण के माथे पर तिलक लगाती हैं, वह भी उनकी बहन हैं। इससे पीछे देखिए तो शक्ति नारायण की बहन हैं औऱ सरस्वती शिव की बहन हैं। अशोक सुन्दरी गणेश और कार्तिकेय की बहन हैं और शांता श्रीराम की बहन हैं। कहने का तात्पर्य तो यही है कि हमारे पुराणों में तो भाई-बहन के सम्बन्धों का उल्लेख है मगर सोचने वाली बात यह भी है कि ऐसा क्या हो गया कि बहनों को हाशिये पर रखकर समस्त देवी-देवताओं को पत्नी और बच्चों तक समेटकर बांध दिया गया। शक्ति, शिव, सरस्वती और लक्ष्मी में गहरा सम्बन्ध है, सब के सब एक दूसरे के पूरक हैं, फिर ऐसा किसने किया होगा कि पारिवारिक अवधारणा को अपने स्वार्थ के लिए पति-पत्नी और बच्चों तक सीमित कर दिया जबकि श्रीकृष्ण तो राधा के साथ सुभद्रा और द्रौपदी को भी...

एक दीया बुझी हुई पारिवारिक व्यवस्था के नाम

चित्र
समय के साथ हर चीज बदलती है, रिश्तों का रूप बदलता है मगर जारी रहता है उनमें टकराव। इस बार दीपावली विशेष है क्योंकि स्वास्थ्यगत असुविधाओं से जूझते हुए आज की शाम मुझे ईश्वर का वरदान ही लग रही है। कभी सोचा नहीं था मगर ऐसी परिस्थितियां बनीं...आज का दिन उन पर बात करने का नहीं है मगर रुककर सोचने का जरूर है। आमतौर पर स्त्रियों के बारे में लिखती रही हूँ, उनके हक की बात करती आ रही हूँ...मगर यह वह समय है जब समाज और परिवार को ही नहीं, स्वयं स्वावलम्बी, सुशिक्षित, समझदार स्त्री को रुककर सोचने की जरूरत है जिसे सामंजस्य कायरता लगता है। फेसबुक से लेकर यू ट्यूब व इंस्टाग्राम तक ऐसे रील दिख जाते हैं जहां एक स्त्री या तो ससुराल या पति से प्रताड़ित है...या एकता कपूर के धारावाहिकों की तरह षडयंत्र रचती है और अक्सर यह सब हास्य में लपेटकर दिया जाने वाला वह जहर है जिसमें अबोध बच्चों को शामिल किया जाता रहा है। आज की लड़की वह स्वतंत्र लड़की है जिसे अपने माता- पिता, भाई-बहन अपनी जिम्मेदारी लगते हैं, उनके लिए सॉफ्ट कॉर्नर है, वह कृतज्ञ है मगर जिस घर में वह गयी है। जिस व्यक्ति का हाथ पकड़कर आई है, जहां उसे पूर...