रिश्तों के बीच पुल बनिए, दीवार बनना सही नहीं
सोशल मीडिया पर जिस तरह के कंटेंट महिलाएं बना रही हैं और अपने पारिवारिक झगड़ों का उपयोग टीआरपी पाने और फॉलोवर बढ़ाने के लिए कर रही हैं, उसके दूरगामी परिणाम कुछ अच्छे नहीं है। हैरत की बात यह है कि इसमें लड़के भी साथ दे रहे हैं। अधिकतर कंटेंट आजादी के नाम पर सास-बहू की आलोचना के लिए या बहू के अधिकारों की रक्षा के नाम पर उनकी गलतियों को जस्टीफाई करते हुए बनाए जाते हैं। मां का घर है मायका मगर ससुराल आपके सास-ससुर के नाम पर है यानी शाब्दिक दृष्टि से भी यह घर आपके पति से अधिक उनके माता -पिता का है। भारतीय परिवारों की समस्या यह है कि अपने मायके में एडजस्ट करने वाली लड़कियां और माता- पिता की प्रतिष्ठा के लिए समझौते करने वाली लड़कियां भी ससुराल में पहले दिन से ही अपनी एक अलग दुनिया बनाने लगती हैं जिसमें वह, उनके पति व बच्चे होते हैं, और कोई नहीं। वह यह मान लेती हैं कि वह इस घर में आ गयी हैं तो अब पति पर, पति के जीवन पर, पति की इच्छाओं पर तो उनका अधिकार है, बस पति के रिश्तेदार उनके कुछ नहीं लगते। वहीं माता-पिता अब भी उसी पुरानी दुनिया में जी रहे हैं, उनको अब भी अब भी अपना बेटा 24 घंटे अपने पा...