पुरुषों के शब्दकोश में त्याग शब्द का होना अब जरूरी है
लोग कहते हैं कि स्त्री को समझना बहुत कठिन है मगर मुझे लगता है कि स्त्री को फिर भी समझा जा सकता है, पुरुष को समझना बहुत कठिन है। स्त्री को प्रेम दीजिए, सम्मान दीजिए..वह आपके जीवन में ठहर जाना चाहेगी मगर मानसिकता अब भी उसे भोग की वस्तु या सम्पत्ति समझने की है । समाज की रवायत ऐसी है कि यह सिखा दिया गया है कि स्त्री को पुरुष की तुलना में कम सफल होना चाहिए..कद छोटा होना चाहिए...सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक दृष्टिकोण से । कई लोग बड़े गर्व से कहते हैं कि उन्होंने घर की स्त्रियों को बहुत आजादी दे रखी है । किसी स्त्री ने कभी पलटकर न पूछा कि आजादी तो प्राणाी मात्र का नैसर्गिक अधिकार है, उसे देने अथवा छीनने वाले आप कौन? कई पुरुषों को देखा है, बड़े गर्व से बताते हैं कि उन्होंने अपनी पत्नी या बेटी को यह बता दिया है कि उसके कार्यक्षेत्र क्या हैं, उसे क्या करना चाहिए..कैसे चलना चाहिए....। बहनों की बात इसलिए नहीं कर रही कि परिवारों के अधिकार के क्षेत्र में बहनों का अस्तित्व ही नहीं है । अधिकार की बात हो तो वह सबसे पहले बाहर की जाने वाला सम्बन्ध हैं....पुरुष अपनी बेटियों को लेकर सपने सजा सकते हैं, म